Followers

Copyright

Copyright © 2023 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

शनिवार, 8 जून 2019

"क्षणिकाएँँ"





(1)

 सांध्य आरती में,
जलती धूप सी ।
कुछ अनुभूत यादें,
जब भी आती हैं ।
मन के भूले-भटके,
छोर महकने लगते हैं ।

(2)

स्मृतियों का वितान
संकरा सा है...
जरा और खोल दो ।
यादों के जुगनू..
मन के बियाबान में
थोड़े और बढ़ गए हैं ।।
     
       ********



20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत सुंदर मनभावन मन में हल्की सी प्रीत जगाता कोमल सरस सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ कुसुम जी ।

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार जून 09, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरे सृजन को अपनी प्रस्तुति में स्थान देने के लिए मैं आप का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. क्षणिकाएं सार्थक हो गईंं आपकी सराहना पा कर ।

      हटाएं
  4. बेहद खूबसरत दी...लाज़वाब क्षणिकायें👍

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर....मन को हर्षाती सी क्षणिकाएं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्वागत आपका"मंथन" पर ... आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद आत्ममुग्धा जी ।

      हटाएं
  6. यादें आपसी ही होती हैं ... महका जाती हैं जीवन के कोर कोर ...
    भावपूर्ण लिखा है ....

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर शब्दों की माला मन को हर्षाती क्षणिकाएँ लाजवाब....मीना जी

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"