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मंगलवार, 17 मार्च 2020

"अधिकार"

छवि को देख गुंजन को यकीन नहीं हुआ कि यह   वही छवि है जिसकी चंचलता और शरारतों से उन पाँच सखियों की मंडली गुलजार हो जाया करता थी । अगर एक दिन वह न आती तो दूसरे दिन उसकी जम कर क्लास लगती कि कल वह कहाँ थी ? कॉलेज से बी.ए.करने के बाद वह अपने पिताजी के ट्रांसफर के साथ ही परिवार सहित भोपाल शिफ्ट हो गई । उदयपुर में सभी से फोन सम्पर्क कुछ समय रहा लेकिन धीरे-धीरे सभी घर-गृहस्थी में रम गई । अल्हड़पन की जगह परिपक्वता सभी में आ गई थी । परिपक्वता का संबंध शायद बचपन के मैत्रीपूर्ण संबंधों से दूरी और खुद की गृहस्थी में रम जाने से है बाकी विचारों की परिपक्वता को समझ पाना हर किसी के बस की बात कहाँ होती है ?
 बरसों बाद अचानक मॉल में छवि गुंजन को देख कर पहचान नहीं पाई...कितना बदल गई थी वह..चेहरे पर हरदम रहने वाली मुस्कुराहट का स्थान उदासी और गंभीरता ने ले लिया था । पुणे में चार साल से रहती छवि को पहली बार पता चला कि उसकी प्रिय सखी की ससुराल यहीं पर है । आपस में पता और  फोन नंबर ले और फिर से मिलने का वचन लेकर उन्होंने विदा ली । मिलने का मौका भी बहुत जल्दी ही मिला..एक दिन गुंजन का फोन आया कि पति व घर के सभी सदस्य शादी में गए हैं वह अस्वस्थ होने के कारण घर पर ही है क्या वो उससे मिलने आ सकती है ? मोहित स्कूल से घर आ चुका था अतः ना का तो सवाल ही नहीं था , पति को फोन पर जाने की सूचना देकर  छवि के घर जाने के लिए दोनोंं माँ -बेटा ऑटो स्टैंड की ओर बढ़ गए ।
 घर पर छवि और उसकी बिटिया थीं । जो माँ के निर्देशानुसार मोहित को स्टडीरूम में ले गई । उसे याद आया उनके ग्रुप में छवि की सगाई बी.ए. फाइनल कम्पलीट होने से पहले ही हो गई थी , अक्सर वे सभी उसको कितना छेड़ा करती थी और दूध सी उजली छवि उनके हँसी-मजाक के चलते गुलाबी हो जाया करती थी । मगर अब वो छवि कहाँ थी...ये छवि तो अलग ही है मानों मूर्ति खड़ी हो  सामने । बस एक ही अन्तर था वह सजीव थी । बहुत पूछने की जरूरत ही नही पड़ी..बच्चों के हटते ही वह उसके कंधे पर सिर रख कर रो पड़ी । कुछ देर बाद सहज होने पर उसने बताया--- परम्पराओं में बंधे ससुराल में सब कुछ होने के साथ-साथ अपनी वर्जनाएं भी हैं । साधारण व्यक्तित्व के मालिक पतिदेव को उसका चंचल स्वभाव पसंद नहीं था , उसकी खिलखिला कर हँसने की आदत उनकी नजर में फूहड़ता थी तो सबसे घुलमिल कर बात करने का स्वभाव निहायत ही मूर्खतापूर्ण हरकत । मायके में सब की चहेती खूबसूरत सी छवि का सजना - संवरना भी उन्हें पसंद नहीं... अपने आपको भूल कर  पति के साँचे में ढलने के प्रयास में चंचल निर्झर से स्वभाव वाली छवि संगमरमरी प्रतिमा ही तो लग रही थी । अचानक गुंजन के रूप में अतीत को सामने देख वह अपने पर से नियंत्रण खो बैठी और व्यथा आँखों से बह निकली ।
मोहित और अनन्या के वापस आ जाने से दोनोंं की बातों
का सिलसिला वहीं थम गया और बातों का केन्द्र बिन्दु बच्चे
बन गए । अनन्या प्यारी सी बच्ची थी जो सेवन्थ स्टैंडर्ड में पढ़ रही थी । अपने घर के वातावरण के अनुसार बच्ची भी गंभीर स्वभाव की थी । सांझ होने से पहले फिर से मिलने का वादा ले और खुद का ख्याल रखने की हिदायत दे वह मोहित के साथ घर लौट आई ।
रात में सोने से पहले बच्चे ने होमवर्क पूरा किया कि नहीं  , यह जानने के लिए वह मोहित का बैग चेक कर रही थी तभी मोहित ने आज जो कुछ नया देखा और सीखा उसके लिए जिज्ञासु स्वभाव के अनुरूप प्रश्न पूछा  -- मम्मी मूल अधिकार -- समानता ... स्वतंत्रता .. और...और…,अनन्या दीदी पढ़ रही थी बुक में..बताओ ना क्या... और क्या होता है ? मैं तो भूल भी गया..,.गुंजन सोच रही थी --- "अधिकारों - कर्तव्यों की शिक्षा की पौध छोटी कक्षाओं से आरम्भ होकर 
 शिक्षा के उच्चतम स्तर तक पहुँचती हुई  वटवृक्ष सी बनती है…. मगर किताबों के पन्नों से व्यवहारिकता के धरातल पर उन्हें पाने के लिए कितने सागर..पर्वत और मरूस्थल
लांघने पड़ते हैं । महिलाओं के लिए नंगे पैरों का यह सफ़र कठिन ही नहीं दुसाध्य भी है । कितनी हैं ऐसी जो यह सफ़र तय कर लेती हैं और कितनी ही बीच राह ...हौसला छोड़
देती हैं ।" 
कंधे को हिलाता मोहित अपनी माँ की तंद्रा भंग करने की कोशिश कर रहा था ।

★★★★★

11 टिप्‍पणियां:

  1. यथार्थ हैं -" मूल अधिकार ,समानता ,स्वतंत्रता ,अधिकारों -कर्तव्यों की शिक्षा किताब तक ही सिमटकर रह जाती हैं ,व्यवहारिकता के धरातल पर उन्हें पाने के लिए औरत को कितने सागर..पर्वत और मरूस्थल लांघने पड़ते हैं ।"एक छोटी सी कथा से कितने गहरी बात कह दी आपने ,सच ,यथार्थ तो कुछ अलग ही होता हैं -इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण हैं -एक औरत अपने घर परिवार के सुख शांति के लिए खुद से ही समझौता करती रहती हैं ,बड़ी मार्मिक कथा ,सादर नमन मीना जी

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    1. लघुकथा के संदेश को सार्थक करती आपकी अनमोल समीक्षात्मक प्रतिक्रिया पा कर अत्यंत हर्ष हुआ । हृदयतल से बहुत बहुत आभार । सादर स्नेहिल नमन कामिनी जी ।

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  2. मीना दी, ज्यादातर औरते यतार्थ के धरातल पर सामंजस्य बिठाने हेतु खुद की इच्छाओं का इसी तरह गाला घोंट देती हैं। सुंदर रचना।

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    1. लेखन को सार्थकता प्रदान करती अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार ज्योति बहन । सस्नेह...,

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.3.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3645 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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    1. चर्चा मंच की चर्चा में मेरे सृजन को शामिल करने के लिए हृदयतल से आभार दिलबाग सिंह जी ।

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  4. विचारोतेज्ज्क लघु-कथा। अधिकारों की बात कई बार किताबी बातें ही बनकर रह जाती हैं और कईयों के लिए एक स्वप्न ही होती हैं।

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  5. विचारोतेज्जक लघु कथा। आपने सही कहा कि हमारे समाज का ढाँचा कुछ इस तरह बना है कि कई महिलाओं के लिए अधिकारों की यह बातें केवल किताब में ही रह जाती हैं।

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    1. लघुकथा के मर्म की सारगर्भित समीक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार विकास जी ।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"