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सोमवार, 27 अप्रैल 2020

"हाइकु"

महानगर ~
वैश्विक महामारी
सूनी डगर ।

 भोर व सांझ ~
 खिड़कियों से आती
 काढ़े की गन्ध ।

जामुन गाछ~
बाल झुंड सिमटा
ग्रीष्म मध्याह्न ।

मध्य यामिनी ~
बालिका के हाथ में
केक व छुरी ।

खेत की मेड़~
बोझा सिर पे लादे
दृग छलकें ।

नदी में बाढ़ ~
तट पर मजमा
डूबती बस ।

वर्षा फुहार~
मेज पर थाली में
चाय पकौड़े ।

जीर्ण हवेली~
झरोखे के छज्जे पे
चील का नीड़ ।

★★★★★

27 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत शानदार प्रस्तुति मीना जी सार्थक हाइकु सृजन।

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    उत्तर
    1. ऊर्जावान सराहनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार कुसुम जी !

      हटाएं
  2. बहुत सुन्दर हाइकू ... प्रतीकात्मक अन्जाज में कहने का लाजवाब अंदाज़ हैं हाइकू ...
    खूबसूरत ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन का मान बढ़ाती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए असीम आभार नासवा जी ।

      हटाएं
  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28 -4 -2020 ) को " साधना भी होगी पूरी "(चर्चा अंक-3684) पर भी होगी,
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच की प्रस्तुति में सृजन को मान देने के लिए सादर आभार कामिनी जी ।

      हटाएं
  4. वाह ! बेहतरीन हाइकु आदरणीया दीदी... लाजवाब प्रतीक
    बहुत ही सुंदर अंदाज़
    सादर स्नेह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन को सार्थकता देती अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार अनीता बहन !

      हटाएं
  5. बहुत ही लाजवाब हायकु मीना जी!
    शानदार विम्ब और प्रतीक
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार सुधा जी.

      हटाएं
  6. वाह!मीना जी ,बहुत सुंदर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार शुभा जी.

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"