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शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

"तुम तो नहीं हो"

तुम तो नहीं हो

मगर..

तुम्हारी यादों में 

आजकल

मन भटकता बहुत है 

कमरे की खिड़की से

निकल..

पहुँच जाता है सोने सी 

भूरी बालू के छोटे से

 ढूह पर...

पूछता है तुमसे

ये टीले पर धान कम 

और...

उस तलाई में ज्यादा क्यों ?

पलट कर तुम

 मुझे अन्तर समझाया करती थी 

अब तुम तो नहीं हो

बस...

यादें हैं तुम्हारी

मगर इस मन का क्या ?

 बौराया सा 

एक के बाद दूसरा..

और न जाने कितने ही

प्रश्न करता था

 तुम से...

कितने ही ऐसे सवाल

जिनके जवाब 

तुम्हारे आँचल के 

छोर से बँधे थे

कितने ही वैसे  सवाल

जो उलझा कर तुम्हें

तुम में 

झुंझलाहट भर देते थे

पता है...कल मैंने

कच्चे आम की

सब्जी बनाई थी

और...

इतने बरसों के बाद भी

उसमें स्वाद 

तुम्हारे हाथों वाला ही था

लगता है ...

मेरे हाथ भी अब

तुम्हारे ख्यालों की

 महक से

महकने लगे हैं


🍁🍁🍁

26 टिप्‍पणियां:

  1. खुबसूरत एहसासों की सुगंध इस रचना में बसी है। 'एक बाद दूसरा' को 'एक के बाद दूसरा' कर दें।

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    उत्तर
    1. एक लम्बे अन्तराल के बाद अपनी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया देखना सुखद अनुभूति है । त्रुटि इंगित करने के लिए असीम आभार राही जी ।

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 04 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सांध्य संकलन में रचना को साझा करने हेतु सादर आभार आदरणीय दिग्विजय सिंह जी ।

      हटाएं
  3. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति सराहना से परे।
    भाव और शब्दों को बहुत ही सुंदर ढंग से गूँथा है आदरणीय मीना दी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्नेहिल सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आनीता ! सस्नेह...,

      हटाएं
  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-09-2020) को   "शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ"   (चर्चा अंक-3815)   पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कल की चर्चा प्रस्तुति में रचना को मान देने के लिए सादर आभार सर !

      हटाएं
  5. उत्साहवर्धन के लिए आभारी हूँ सर .

    जवाब देंहटाएं
  6. मीना जी आपकी रचनाओं में इतनी संवेदना होती है एक एक सब अंतर तक उतर कर अपनी कहानी कहने लगता है ।
    सच अद्भुत।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहपगी प्रतिक्रिया से रचना को मान मिला कुसुम जी हृदयतल से आभार ।

      हटाएं
  7. सुंदर अभिव्यक्ति भावनाओं की।

    जवाब देंहटाएं
  8. इतने बरसों के बाद भी

    उसमें स्वाद

    तुम्हारे हाथों वाला ही था

    लगता है ...

    मेरे हाथ भी अब

    तुम्हारे ख्यालों की

    महक से

    महकने लगे हैं
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण ,लाजवाब सृजन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया पाकर लेखन को सार्थकता मिली ।हार्दिक आभार सुधा जी !

      हटाएं
  9. लगता है ...
    मेरे हाथ भी अब
    तुम्हारे ख्यालों की
    महक से
    महकने लगे हैं
    संवेदनाओं से भरी अंतर्मन को छूती हुई ,भावपूर्ण,लाज़बाब सृजन मीना जी,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया पाकर लेखन को सार्थकता मिली ।
      सादर नमस्कार सहित बहुत बहुत आभार

      हटाएं
  10. किसी अपने की यादें अक्सर उसके करीब ले जाती हैं फिर हर शै में वो ही वो होता है बस ... बहुत सुंदार रचना ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन का मर्म सार्थक करती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार नासवा जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"