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गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

"यादें"

 


आधी सी रात  में..

धीमे से बादल उतरते ।


मोती सी तुषार बूँदें..

सरसों पर देखी बिखरते ।


ऊन जैसा परस तेरा..

सर्दियों के दिन हठीले ।


चाय की वो चुस्कियाँ..

शीत लहरों में ठिठुरते ।


कहा भरे दिल से विदा...

रोये फिर मुझ से बिछुड़ के ।


 मैं तुम्हें कैसे  बताऊँ...

दिन ये इतने कैसे बीते ।


धूप के बिन लगे देखो ...

दिन भी रोते और बिसूरते ।

--

 【 चित्र :- गूगल से साभार 】


32 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा..बहुत बहुत आभार सर!

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  2. कहा भरे दिल से विदा...

    रोये फिर मुझ से बिछुड़ के ।


    मैं तुम्हें कैसे बताऊँ...

    दिन ये इतने कैसे बीते ।

    बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण सृजन
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सुधा जी !

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  3. बहुत बढ़िया। बाकी "यादे" सिर्फ यादे रह जाती है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार शिवम् जी!

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा..बहुत बहुत आभार सर!

      हटाएं
  5. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा..बहुत बहुत आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-१२-२०२०) को 'यादें' (चर्चा अंक- ३९२७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार अनीता ।

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  7. बहुत जरूरी है धूप भी ... जीवन और आज के मौसम दोनों में ...
    सुन्दर अभिव्यक्ति ....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन का मान बढ़ा...हार्दिक आभार नासवा जी!

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  8. सुन्दर अभिव्यक्ति, आने वाला समय आपके और आपके सपूर्ण परिवार के लिए मंगलमात हो

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुन्दर सराहना भरी सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली । सर आपके लिए भी सम्पूर्ण परिवार सहित आने वाला समय मंगलमय हो 🙏🙏

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  9. स्मित सरगम सी .... मखमली छुअन सी .... बेहद खूबसूरत अहसास ।

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    1. सुन्दर सी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई..हार्दिक आभार अमृता जी!

      हटाएं
  10. धूप के बिन लगे देखो ...

    दिन भी रोते और बिसूरते ।
    ------------
    वाह क्या बात है! सुंदर प्रस्तुति। आपको शुभकामनाएं और बधाई। सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुन्दर सराहना भरी सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार वीरेंद्र सिंह जी।

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  11. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शांतनु जी!

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  12. गहरे एहसासों का अप्रतिम सृजन।
    सुंदर हृदय तल तक उतरता‌

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    उत्तर
    1. ऊर्जावान सराहना भरी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई..हार्दिक आभार कुसुम जी!

      हटाएं
  13. मैं तुम्हें कैसे बताऊँ...

    दिन ये इतने कैसे बीते ।


    धूप के बिन लगे देखो ...

    दिन भी रोते और बिसूरते ।
    बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी!

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  14. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अभिलाषा जी!

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  15. मोती सी तुषार बूँदें..
    सरसों पर देखी बिखरते..बसंत ऋतु का आगमन !झूम जाता सहज मन ! आपकी ये पंक्तियाँ कर गई हैं मुदित मन ! मनोहारी कृति..

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    उत्तर
    1. सुन्दर सराहना भरी सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार जिज्ञासा जी!

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  16. ह्रदय स्पर्शी बेहद खूबसूरत अहसास ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार संजय जी!

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"