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शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

ख़्वाब

 

सूखी रेत के

 ढूह पर…,

तुम्हारा मन है कि

तुम बनाओ

एक घरौंदा

तो बनाओ ना…,

रोका किसने है

छागल में अभी भी

 बाकी है 

पानी की बूँदें,

एक घरौंदे की 

 गीली रेत जितनी

आज...

समय और फुर्सत से

कर लो अपना

 ख़्वाब पूरा

तुझमें  - मुझमें

बाकी है अभी

 इतना हौसला कि

पहुँच जाएंगे कुएँ के पास

 या फिर …,

खोद लेंगे एक कुँआ

अपनी छोटी सी

प्यास की खातिर 

***

【चित्र : गूगल से साभार】



28 टिप्‍पणियां:

  1. तुझमें - मुझमें

    बाकी है अभी

    इतना हौसला कि

    पहुँच जाएंगे कुएँ के पास

    या फिर …,

    खोद लेंगे एक कुँआ

    अपनी छोटी सी

    प्यास की खातिर

    वाह !! क्या बात कही है,होसलो को उड़ान देती आपकी लाजबाब रचना मीना जी,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी !सादर वन्दे ।

      हटाएं
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०९-०७-२०२१) को
    'माटी'(चर्चा अंक-४१२१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर सृजन को मान देने के लिए हृदय से आभार अनीता जी!

      हटाएं
  3. क्या बात !!! बस ऐसे ही हौसले की दरकार है जीवन में ।
    जो कुआँ खोद ले फिर वो क्या नहीं कर सकता ।
    सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना लेखन के प्रति नवीन ऊर्जा प्रदान करती है मैम!सादर आभार 🙏🌹

      हटाएं
  4. खोद लेंगे एक कुँआ
    अपनी छोटी सी
    प्यास की खातिर
    बहुत सुंदर प्रिय मीना जी 👌👌👌
    लोक जीवन में तुरंत कुंआ खोदकर पानी पीने को बहुत जीवट और कर्मठ लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है। ऐसे हौंसले मरुभूमि पर हरियाली का स्वप्न साकार करते हैं। भावपूर्ण अभिव्यक्ति जिसमें अनुराग का रंग गहरा है। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सारगर्भित सृजन को मुखर करती प्रतिक्रिया ने सृजन का मान बढ़ाया हृदय से असीम आभार प्रिय रेणु जी 🙏🌹

      हटाएं
  5. बहुत सुंदर रचना,जल की महत्ता समझाती तथा साहस का दामन न छोड़ने का आग्रह करती उत्कृष्ट रचना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मनोबल संवर्द्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार जिज्ञासा जी🙏🌹

      हटाएं
  6. सही राह दिखाने वाली कविता है यह आपकी मीना जी। इसके स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों ही भाव समझने तथा ग्रहण करने योग्य हैं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित और सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को मान और सार्थकता प्रदान की । आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार जितेन्द्र जी ।

      हटाएं
  7. वाह!मीना जी ,बहुत खूबसूरत ,मनोबल बढाता हुआ सृजन ।

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    उत्तर
    1. मनोबल संवर्द्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार शुभा जी !

      हटाएं
  8. बेहद गहन रचना है मीना जी...। यह यूं ही नहीं मंथी जा सकती हैं...मेरी शुभकामनाएं स्वीकार कीजिएगा...। यह रचना अगले अंक में अवश्य लेंगे, आप मेल या व्हाटसऐप कर दीजिएगा प्लीज।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया एवं रचना चयन हेतु बहुत बहुत आभार संदीप जी 🙏

      हटाएं
  9. उत्तर
    1. मनोबल संवर्द्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार उषा जी!

      हटाएं
  10. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार सर!

      हटाएं
  11. किसने रोका है ...
    ये मन का द्वन्द होता है जो रोकता है, कभी हिम्मत देता है ...
    बहुत बाखूबी उतारा है इसे आपने रचना में ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मनोबल संवर्द्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार नासवा जी!

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  12. ऐसी ही जिद हो तो फिर प्यास की तृप्ति के लिए क्या कहना । बहुत ही बढ़िया कहा ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन को पूर्णता प्रदान करती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार अमृता जी🙏🌹🙏

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"