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मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

“जीवन”


संकल्पों के साथ 

शून्य से आरम्भ

 यात्रा पथ पर 

चलना है अनवरत

इस अनदेखे सफ़र का

न गंतव्य दिखता है 

और न समापन


चलते-चलते

कब उद्देश्य निरुद्देश्य से

लगने लगते हैं

और…कब…, सफ़र

 अन्तिम पड़ाव पर 

आ खड़ा होता है 

भान ही नहीं होता


मानें या ना मानें

शून्य से आरम्भ 

और..

शून्य पर ख़त्म 

असमंजस में लिपटे

यात्रा पथ पर चलना ही

जीवन की

शाश्वत परिभाषा है


***

20 टिप्‍पणियां:

  1. उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. हृदय में उठी उहा पोहा का बहुत ही सुंदर चित्रण जो जीवन का सार समझाते हुए अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहा है।
    बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया हृदय से बहुत बहुत आभार अनीता जी । सादर सस्नेह …।

      हटाएं
  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. “जीवन” को मंच पर साझा करने के लिए सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी ।

      हटाएं
  4. मानें या ना मानें

    शून्य से आरम्भ

    और..

    शून्य पर ख़त्म

    असमंजस में लिपटे

    यात्रा पथ पर चलना ही

    जीवन की

    शाश्वत परिभाषा है.. जीवन संदर्भ पर गहन चिंतनपूर्ण रचना ।
    बहुत शुभकामनाएं मीना जी ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी । सादर सस्नेह ….।

      हटाएं
  5. यह सफ़र समाप्त हुआ सा लगता ज़रूर है पर होता नहीं, शाश्वत है यह इस सृष्टि की तरह, अलग अलग समय पर अलग अलग रूपों में न जाने कितनी बार हम यहाँ आए हैं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।

      हटाएं
  6. जीवन की अनबूझ पहेली को सुलझा पाओ या न सुलझा पाओ लेकिन चलते जाओ, चलते जाओ !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन का मान बढ़ाया । सादर आभार जैसवाल सर !

      हटाएं
  7. मानें या ना मानें

    शून्य से आरम्भ

    और..

    शून्य पर ख़त्म

    असमंजस में लिपटे

    यात्रा पथ पर चलना ही

    जीवन की

    शाश्वत परिभाषा है
    सही कहा असमंजस ही है इस जीवन सफल में...
    उद्देश्य कब निरुद्देश्य से लगने लगते हैं और फिर वही शून्य
    बहुत सुंदर चिंतनपरक सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया हृदय से बहुत बहुत आभार सुधा जी । सादर सस्नेह …।

      हटाएं
  8. उत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शर्मा सर !

    जवाब देंहटाएं
  9. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनुज !

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"