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मंगलवार, 14 मार्च 2023

“मैत्री”

( Click by me )

सूरज की सोहबत में

लहरों के साथ दिन भर

गरजता उफनता रहा 

समुद्र ..

साँझ तक थका-मांदा 

जलते अंगार सा वह जब

जाने को हुआ अपने घर

 तो..

बिछोह की कल्पना मात्र से ही

बुझी राख सा धूसर 

हो गया सारे दरिया का

 पानी …

चलते -चलते मंद स्मित के साथ 

सूरज ने स्नेहिल सी सरगोशी की

बस..

रात , रात की ही तो बात है 

मैं फिर आऊँगा

माणिक सी मंजूषा में कई रंग लिए

कल..

हम फिर से निबाहेंगे वही

अनादि काल से चली आ रही 

 परिपाटी ।


***

20 टिप्‍पणियां:

  1. हृदयतल से बहुत बहुत आभार नीतीश जी !

    जवाब देंहटाएं
  2. बिछोह की कल्पना मात्र से ही

    बुझी राख सा धूसर

    हो गया सारे दरिया का

    पानी …
    सुन्दर बिम्बों के साथ लाजवाब सृजन
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सुधा जी !
    आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!!!
    रात , रात की ही तो बात है

    मैं फिर आऊँगा

    माणिक सी मंजूषा में कई रंग लिए

    कल..

    हम फिर से निबाहेंगे वही

    अनादि काल से चली आ रही

    परिपाटी ।

    हृदय झंकृत करती रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सधु चन्द्र जी !
      आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।

      हटाएं
  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (16-3-23} को "पसरी धवल उजास" (चर्चा अंक 4647) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी ! सादर सस्नेह वन्दे!

      हटाएं
  6. अति सुंदर बिंबों से सुसज्जित सारगर्भित अभिव्यक्ति दी।
    प्रकृति जीवन के हर प्रश्न का कितनी उत्तर सहजता से देती है न...।
    सादर स्नेह।

    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ मार्च २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  7. सत्य कथन श्वेता ! प्रकृति वास्तव में अपने आप में बहुत बड़ी शिक्षक है । सुन्दर सार्थक अनमोल प्रतिक्रिया हेतु एवं पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने हेतु हृदय से असीम आभार । सस्नेह..।

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रकृति एक लय में निभाती रहती है अपने सारे वादे, मानव के जीवन से ही छ्न्द विदा हो गया है जैसे

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार अनीता जी !
      आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।

      हटाएं
  9. उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार नीतीश जी ।

      हटाएं
  10. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.ओंकार सर जी ।

    जवाब देंहटाएं
  11. माणिक सी मंजूषा में कई रंग लिए
    कल...
    भावों और एहसासों का अद्भुत संप्रेषण। सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी !

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"