भोर से सांझ तक ..
एक आलस भरा दिन
मुट्ठी से रेत सा
निकल गया..
चलो ! अच्छा है
ज़िन्दगी के रजिस्टर में
एक दिन और..
दिहाड़ी का पूरा हुआ ।
*
समय की शाख से टूट कर
एक पल.,,
चुपके से आ गिरा सिरहाने पर
ऐसे समय में
रात की साम्राज्ञी को
ठाँव कहाँ..
बेचारी बेघर सी भटकती
रहेगी अब
दृग पटल के इर्द-गिर्द ।
*
जिंदगी के रजिस्टर में एक दिन.. और दिहाड़ी.. जिंदगी का कारगर हिसाब किताब । अर्थपूर्ण क्षणिकाएं
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर काव्य पंक्तियां
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हटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏
हर क्षणिका कमाल है ...
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदयतल से बहुत बहुत आभार ॥
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