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सोमवार, 27 मार्च 2023

“क्षणिकाएँ”


भोर से सांझ तक .. 

एक आलस भरा दिन

 मुट्ठी से रेत सा

निकल गया..

चलो ! अच्छा है 

ज़िन्दगी के रजिस्टर में

एक दिन और..

दिहाड़ी का पूरा हुआ ।


*


समय की शाख से टूट कर 

एक पल.,,

चुपके से आ गिरा सिरहाने पर

ऐसे समय में

रात की साम्राज्ञी को 

ठाँव कहाँ..

बेचारी बेघर सी भटकती 

रहेगी अब

दृग पटल के इर्द-गिर्द ।


*


8 टिप्‍पणियां:

  1. जिंदगी के रजिस्टर में एक दिन.. और दिहाड़ी.. जिंदगी का कारगर हिसाब किताब । अर्थपूर्ण क्षणिकाएं

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  2. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  4. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्तर

    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदयतल से बहुत बहुत आभार ॥

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"