एक मुट्ठी ख्वाबों की
सहेजी एक आइने की तरह
जरा सी छुअन, छन्न से टूटने की आवाज
घायल मुट्ठी, कांच की किर्चों के साथ सहम सी गई।
एक गठरी यादों की
रेशमी धागों सी रिश्तों की डोर
अनायास ही उलझ सी गयी
कितना ही संभालो हाथों को
किर्चें चुभ ही जाती हैं।
सहेजो लाख रेशमी धागों को
डोर उलझ ही जाती है।।
XXXXX
so nice meena ji.
जवाब देंहटाएंThanks Dharmendra ji .
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