सांझ-सवेरे आजकल मन
पुरानी यादों में डूबता है ।
क्षितिज पर बिखरी लाली में
डूबते दिनकर को ढूंढता है ।
खाली कोना छत का और
घण्टाघर की घड़ी के तीर ।
बेख्याली में बन के पागल
खोये बचपन को ढूंढता है
घरों को लौटते परिन्दे और
आसमान में छिटपुट तारे ।
ढलती सांझ के साये में
“सांझ के तारे” को घूरता है ।
जाने क्यों आजकल मन
बेवजह यादों में डूबता है ।
एकाकी सा खड़ा एक घर
अपनों की बाट जोहता है ।
XXXXX
बहुत सुंदर,उपमाओं से सजी खूबसूरत कविता मीना जी👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी .
हटाएंमहिला रचनाकारों का योगदान हिंदी ब्लॉगिंग जगत में कितना महत्वपूर्ण है ? यह आपको तय करना है ! आपके विचार इन सशक्त रचनाकारों के लिए उतना ही महत्व रखते हैं जितना देश के लिए लोकतंत्रात्मक प्रणाली। आप सब का हृदय से स्वागत है इन महिला रचनाकारों के सृजनात्मक मेले में। सोमवार २७ नवंबर २०१७ को ''पांच लिंकों का आनंद'' परिवार आपको आमंत्रित करता है। ................. http://halchalwith5links.blogspot.com आपके प्रतीक्षा में ! "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंनिमन्त्रण के लिए आभार ध्रुव सिंह जी .
हटाएंआप सभी सुधीजनों को "एकलव्य" का प्रणाम व अभिनन्दन। आप सभी से आदरपूर्वक अनुरोध है कि 'पांच लिंकों का आनंद' के अगले विशेषांक हेतु अपनी अथवा अपने पसंद के किसी भी रचनाकार की रचनाओं का लिंक हमें आगामी रविवार(दिनांक ०३ दिसंबर २०१७ ) तक प्रेषित करें। आप हमें ई -मेल इस पते पर करें dhruvsinghvns@gmail.com
जवाब देंहटाएंहमारा प्रयास आपको एक उचित मंच उपलब्ध कराना !
तो आइये एक कारवां बनायें। एक मंच,सशक्त मंच ! सादर
घरों को लौटते परिन्दे और
जवाब देंहटाएंमटमैले आसमान में छिटपुट तारे ।
...वाह बहुत खूब सुन्दर पँक्तियाँ बहुत ही सुन्दर शब्दों में
बहुत बहुत आभार संजय जी .
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