Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

बुधवार, 13 जून 2018

।। मुक्तक ।।

                       (1)

कुछ तुम कहो कुछ मैं कहूँ , बाकी सब बातें जाओ भूल ।
बेकार की है दुनियादारी , नही होते इस से कुछ दुख दूर ।।
औरों की बात करो मत तुम , सब अपनी अपनी करते हैं ।
इस देखा देखी के चक्की में , बस हम जैसे ही पिसते हैं ।।

                          (2)

कल तक जो थे मेरे अपने , अब बेगानों सी बातें करते हैं ।
अपना अपना हम करते हैं , ये अपने ही छल करते हैं ।।
मुठ्ठी में बंद मखमली ख्वाब , तितलियों की तरह मचलते हैं ।।
पा कर खुद को आवरण बद्ध , मुक्ति के लिए तरसते हैं ।।

                         XXXXX

10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह मीना जी क्या बात है....आज तो अलग ही रंग दिख रहा है ..........बहुत ही प्यारे और गुनगनाने लायक मुक्तक बेहतरीन

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी :) !

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १८ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति मेरा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' १८ जून २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीया 'शशि' पुरवार जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आपका ध्रुव सिंह जी ।"लोकतंत्र संवाद मंच" से जुड़ना सदैव उत्साहवर्धक और लेखनी को सम्बल प्रदान करता है ।

      हटाएं
  4. बहुत सुन्दर मीनाजी. ख्वाबों को उड़ने दीजिए वरना भावों की उड़ान उतनी ऊंची नहीं हो पाएगी. 'ये अपने ही छल करते हैं !' 'ये अपने' क्या कोई नेता हैं?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका इतनी अच्छी समझाइश के लिए । कभी पढ़ा था कि सबसे पहले आज्ञानुसार काम करवाने वाला पहला राजा रहा होगा मेरी नजर में पहला अपना कूटनीतिज्ञ भी नेता समान ही है । एक बार पुनः आभार प्रोत्साहन संवर्धन के लिए ।

      हटाएं
  5. वाह! मनमोहक मुक्तक. भावों से छलकते मुक्तक ज़माने की तासीर बयां कर रहे हैं. बधाई एवम् शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  6. दोनों मुक्तक लाजवाब हैं ...
    भावों का सागर गागर में भर दिया है ... जमाने का हाल बयान करते ... बधाई ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार नासवा जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"