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रविवार, 22 जुलाई 2018

"मनाही"

हम मिलें यह इजाजत नही है
आप से तो शिकायत नहीं है

नक्श दिल से मिटाये हमारे ।
फिर हमें भी लगावट नहीं है ।।

इश्क  करना बुराई  कहां है ।
हम करें यह इनायत नही है।।

क्यों रखे  यूं अजनबी निगाहें ।
आप से  तो अदावत नहीं है ।।

तुम कहो दास्ताने  मुहब्बत ।
हम सुने तो शराफत नही  है ।।
 
XXXXX

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूब ...
    आख़िर शेर तो बहुत कमाल है ... उर सच भी है ...
    ये अदा है प्रेम करने वालों की ...

    जवाब देंहटाएं
  2. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 26 जुलाई 2018 को प्रकाशनार्थ 1105 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "पांच लिंको का आनंद" में मेरी रचना को शामिल कर मान देने के लिए बहुत बहुत आभार रविन्द्र सिंह जी ।

      हटाएं
  3. वाह उम्दा और तंज भी बेहतरीन शेर हर एक।
    सुंदर रचना मीना जी बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. यादों की खुबसूरत नज्म दिल में घर कर गई

    जवाब देंहटाएं
  5. तुम कहो दास्ताने मुहब्बत ।
    हम सुने तो शराफत नही है ।।... क्या बात है , बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"