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सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

"प्रभात वेला” ( तांका )

( 1 )
उजली हँसी
खन खन खनकी
सुन के लगा
भोर वेला में कहीं
कलियाँ सी चटकी

( 2 )

एक टुकड़ा
सुनहरी धूप का
छिटक गया
मन के आंगन में
चपल हिरण सा

( 3 )

बिखर गई
अंजुरी भर बूँदें
ओस कणों की
धुली धुली निखरी
कलियाँ गुलाब की

XXXXX

20 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 22 अक्टूबर 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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    1. आपका स्नेह और उत्साहवर्धन मेरे लिए अनमोल है यशोदा जी । "पांच लिंकों का आनन्द में" मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार ।

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  2. बहुत सुंदर ताका हैं सभी ... विविध रूप की रचनाएँ बख़ूबी लिख रही हैं आप ...

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    उत्तर
    1. आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया अमूल्य है मेरे लिए । बहुत बहुत आभार नासवा जी ।

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  3. सुबह की धूप से मनभावन तांका मीना जी अप्रतिम लेखन।

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    उत्तर
    1. आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से धन्यवाद कुसुम जी ।

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  4. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/10/92-93.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आपका राकेश जी "मित्र मंडली" में मेरी रचना को स्थान देने के लिए ।

      हटाएं
  5. बिखर गई
    अंजुरी भर बूँदें
    ओस कणों की
    धुली धुली निखरी
    कलियाँ गुलाब की
    ...सुंदर ताके हैं सभी पर...अंजुरी भर बूँदें दिल में उतर गई मीना जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लिखना सफल हुआ इस अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार संजय जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"