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सोमवार, 24 दिसंबर 2018

"तुम्हारे लिए'

अपनी उम्र के गुजारे सारे बरस ,
मैनें तुम्हारी झोली में बाँध दिए हैं ।
खट्टी - मीठी गोली वाले ,
नीम की निम्बौरी वाले ।
जो कभी तुम्हारे साथ ,
तो कभी अपने आप जीए हैं ।

मेरे बचपन वाले दिन ,
जरा संभाल कर रखना ।
बिखर न जाएँ कहीं ,
गिरह कस कर पकड़ना ।
मेरे अपने हो तुम ,
तभी तो तुम से साझा किए हैं ।

ऐसा नहीं कि मैं परेशान हूँ ,
अपने सफर से कोई हैरान हूँ ।
मुट्ठी से फिसलती बालू रेत सी ,
जो रह गई हथेली में लगी…,बस ।
उसी उम्र के बचे शेष बरस ,
केवल और केवल तुम्हारे लिए हैं ।

          XXXXX

16 टिप्‍पणियां:

  1. गुजरते हुए हर लम्हे के साथ,
    आने वाले हर पल के साथ,
    मैंने तुम्हे याद किया है.....
    वाह क्या बात है खुबसूरत बहुत ही नाजुक भाव....खूबसूरत रचना !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इतनी खूबसूरत रचनात्मक प्रतिक्रिया के लिये तहेदिल से धन्यवाद संजय जी !!

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 25 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "पाँच लिंकों का आनन्द में" मेरी रचना को शामिल कर मान देने के लिये हृदयतल से आभार यशोदा जी !!

      हटाएं
  3. जिनके लिए ये पल हैं इश्वर उनका साथ, उनके सफ़र का साथ सुखमय करे ...
    मन के जज्बात प्रेम की डोर की मजबूती का एहसास ही जीवन है ...
    अच्छी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अभिभूत हुआ मन..., इतनी सुखद शुभकामना पाकर , आपका हृदय की गहराईयों से हार्दिक आभार नासवा जी 🙏 .

      हटाएं
  4. अपनी उम्र के गुजारे सारे बरस ,
    मैनें तुम्हारी झोली में बाँध दिए हैं ।
    खट्टी - मीठी गोली वाले ,
    नीम की निम्बौरी वाले ।
    जो कभी तुम्हारे साथ ,
    तो कभी अपने आप जीए हैं ।
    वाह !!! अति सुंदर !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार मीना जी आपकी उर्जावान प्रतिक्रिया के लिए !!

      हटाएं

  5. ऐसा नहीं कि मैं परेशान हूँ ,
    अपने सफर से कोई हैरान हूँ ।
    मुट्ठी से फिसलती बालू रेत सी ,
    जो रह गई हथेली में लगी…,बस ।
    उसी उम्र के बचे शेष बरस ,
    केवल और केवल तुम्हारे लिए हैं ।
    बहुत ही खूबसूरत ,लाजवाब रचना...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए ।

      हटाएं
  6. जीवन की अनुभूतियों को सहेज लूं.….
    मुट्ठी से फिसलती बालू रेत सी ,
    जो रह गई हथेली में लगी…,बस ।
    उसी उम्र के बचे शेष बरस ,
    केवल और केवल तुम्हारे लिए हैं।
    वाह कितने कोमल भाव मीना जी बहुत प्यारा अहसास ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया सदैव संबल प्रदान करती है कुसुम जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"