तुम इतने चुप क्यों रहते हो ?
मन ही मन में क्या सहते हो ?
सब में शामिल अपने में गुम ।
उखड़े-उखड़े से दिखते हो ।।
टूटा है यदि दिल तुम्हारा ।
गम की बातें कह सकते हो ।।
मन में अपने ऐंठ छुपाए ।
सब से सुन्दर तुम लगते हो ।।
लगते हो तुम मलयानिल से ।
जब अल्हड़पन से हँसते हो ।।
आगे बहुत अभी है चलना ।
थके थके से क्यों दिखते हो ।।
होते हो जब सामने मेरे ।
मुझको अपने से लगते हो ।।
( कभी एक गज़ल सुनी थी "इतनी मुद्दत बाद मिले हो " और वह इतनी खूबसूरत लगी कि मेरे मन से इस गज़ल का सृजन हुआ)
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बेहद खूबसूरत प्यारी सी रचना...वाहहह मीना जी..रूमानी भावोंं में गूँथी..👌👌
जवाब देंहटाएंबेहद अच्छा लगा कई दिनों के बाद आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया पाकर । आभार श्वेता जी ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 30 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"पांच लिंकों का आनन्द में" मेरी रचना को साझा करने के लिए हृदयतल से आभार यशोदा जी । आपकी हौसला अफजाई से सृजनात्मकता को एक गति मिलती है ।
हटाएंकुछ ख्वाब मैंने देख लिए हैं,
जवाब देंहटाएंकुछ अनदेखे हैं,
वो सारे सपने तुम्हारे हैं...
बहुत प्यारे अहसासों को शब्द दिए है आपने मीना जी:)
रचनात्मक और खूबसूरत सी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार संजय जी ! आपका प्रोत्साहन सदैव लेखन कार्य के लिए उत्साहवर्धन
हटाएंकरता है ।
बहुत सुन्दर रचना 👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनीता जी ।
हटाएंवाह! बहुत खूब। रूमानियत की ताज़गी से लबरेज़।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार विश्व मोहन जी ।
हटाएंबहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंरोमांटिक रचना
बहुत बहुत आभार रविन्द्र जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर मीना जी !
जवाब देंहटाएं'भीड़ के बीच अकेला' नीरज के अल्फाज़ याद आ गए. मन में ऐंठ छिपाए भी सुन्दर दिखना मुश्किल काम है पर प्यार की आँखों से देखो तो हर जगह ख़ूबसूरती ही नज़र आती है.
" भीड़ के बीच अकेला " नमन नीरज जी को 🙏🙏 । बेमिसाल लेखनी और बेमिसाल व्पक्तित्व । ऐसे कलम के धनी लोगो को पढ़ते सुनते ही बड़े हुए , उनकी छाया का अंश भी मिल जाए तो तो खुशी का कहाँ ठिकाना...., आपकी प्रतिक्रिया मिली इसका मतलब आपको कुछ ठीक ठीक लगा उसके लिए सादर आभार । "अपने नन्हे अमेय जी कभी अपनी किसी बात पर नाराजगी में ऐंठ कर बैठे तो कभी गौर से देखिएगा कितने सुन्दर
हटाएंदिखते हैं ।" आपने सही कहा ... ,बस मन और आँखों का नजरिया ही ऐसा है ।
सब में शामिल अपने में गुम ।
जवाब देंहटाएंउखड़े-उखड़े से दिखते हो ।।
खूबसूरत पंक्ति मीना दी।
पर यह सब में शामिल ,अपने में गुम होने का दर्द बेहद खतरनाक होता है।
अधिक खुदकुशी की घटनाओं में यही सुनने को मिलता है कि भाई साहब रात तक तो हम सभी साथ ही थें..
पथिक जी स्वागत आपका ब्लॉग पर और बहुत बहुत आभार इतने खूबसूरत विश्लेषण के लिए ! मेरी कल्पना का व्यक्तित्व सब से अलग है मेरे नजरिए से इसलिए बस ऐसा ही है और यकीन कीजिए अन्तिम काम कभी नही करेगा क्योंकि जग प्रसिद्ध बात "सोना तप कर कुन्दन बनता है" पर विश्वास है मुझे । आपका स्नेहिल संबोधन बेहद अच्छा लगा ।
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सुशील जी ।
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद ओंकार जी ।
हटाएंबहुत प्यारी रचना....... मीना जी, सादर स्नेह
जवाब देंहटाएंकामिनी जी हृदयतल से आभार आपका ,सस्नेह ।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक ने हटा दिया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मीना जी कितनी सहजता से आगे बढती हर पंक्ति जैसे चुप होकर भी बोल रही है, बहुत प्यारी मनभाई अभिव्यक्ति गजल के रूप में वाह्ह्ह।
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहिल सराहनीय प्रतिक्रिया पाकर मन अभिभूत हुआ कुसुम जी ! बहुत बहुत आभार आपका ।
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