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शनिवार, 1 दिसंबर 2018

'हाइकु"


"ऊषा स्वस्ति"

सिमट गया
नींद के आगोश में
भोर का तारा

सृष्टि के रंग
ऊषा की लाली संग
निखर गए

गीली सी धूप
हँसते दिनकर
चहके पंछी

नव आरम्भ
जागे जड़-चेतन
प्रातः वन्दन

XXXXX

6 टिप्‍पणियां:

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"