दौड़ धूप में
आकुल व्याकुल सा
गुजरा दिन
थकी सी रैना
नाराज सी निंदिया
बेकल नैना
दूर व्योम में
धुंधले चंदा तारे
नींद में सारे
ओ री पगली !
सुन बात हठीली
आ मेरी गली
थपकी देती
मदिर पुरवाई
भोर ले आई
,✍️✍️
अनुभूति और चिन्तन सदैव जीवन का हिस्सा रहे लेकिन शब्दों में ढालने का ख्याल बहुत लम्बे अर्से के बाद आया, अपनी यात्रा में आपको साझी बना कर कुछ क्षणों के लिए अपनी दुनिया में ले जा पाई तो मेरा लिखना सफल हुआ।
बहुत खूब ... निंदिया के आँचल तले लिखे सुन्दर हाइकू ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब ...
बहुत बहुत आभार नासवा जी ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 23 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"मुखरित मौन में" में मेरी रचना को साझा करने के लिए हृदयतल से आभार यशोदा जी ।
हटाएंबहुत ही बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
हटाएंथपकी देती
जवाब देंहटाएंमदिर पुरवाई
भोर ले आई
....बेहद उम्दा नींद को समर्पित हाइकु कमाल के हैं सभी
हृदयतल से आभार संजय जी !!
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंआभार ऋतु जी!!
हटाएंबहुत बढ़िया, मीना दी।
जवाब देंहटाएंआभार ज्योति जी !
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंजी आभार ।
हटाएंवाह बहुत सुन्दर हाइकु मीना जी सार्थक लेखन।
जवाब देंहटाएंकुसुम कोठारी
तहेदिल से आभार कुसुम जी ।
हटाएंवाह !! बेहतरीन हाइकु सखी
जवाब देंहटाएंसादर
हृदयतल से आभार सखी सस्नेह ।
हटाएंसुन्दर हाइकु।
जवाब देंहटाएंनिंदिया आयी,
संग सपने लायी,
सुंदर स्वप्न
बहुत सुन्दर हाइकु के साथ आपकी प्रतिक्रिया बेहद अच्छी लगी । बहुत बहुत आभार !!
हटाएंलाजवाब हायकू नींद पर....बहुत ही सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सुधा जी ।
हटाएं