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सोमवार, 6 मई 2019

"बूँद"

सावन की भोर और
घने बादलों से खेलती
सिहरन भरती पछुआ
तभी अचानक टिपुर-टापुर
की रिमझिम के साथ
बादलों को छोड़ एक बूंद
आसमान तकते चेहरे पर
यूं गिरी जैसे ….,
कोई राह भटकी नज्म
पलकों की ओट से
भीगे लबों से करूँ गुफ्तगू कि
वह फिसली शफरी सी
और जा मिली
असंख्य बूंदों के संसार में
तब से अब तक…,
वही भटकी नज्म ढूंढती हूँ
जब सावन की भोर हो
और बारिशों का दौर हो
कभी बरसती बूंदों में
कभी फूलों की पंखुड़ियों में
ओस की बूंद सी थरथराती
सघन पेड़ो के बीच
मकड़ी के जालों में
मोतियों सी झालर में अटकी
मेरे मन की अभिव्यक्ति
बारिश की…, बारिश में खोयी
बारिश की एक बूंद
      
       xxxxx




20 टिप्‍पणियां:

  1. मीना जी निशब्द हूं मैं ¡
    सच क्या कहूं शब्द मूक है, आपकी इस लाजवाब अभिव्यक्ति के लिए।
    अप्रतिम अनुपम।

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    1. अभिभूत हूँ कुसुम जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया पा कर ...., रचनात्मकता सार्थकता मिली और मुझे मनोबल । अति आभार ।

      हटाएं
  2. बहुत खूब मीना जी ,बेहतरीन प्रस्तुति ,सादर नमस्कार

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    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया सदैव मनोबल बढ़ाती है कामिनी जी । हार्दिक आभार..., सस्नेह नमस्कार.

      हटाएं
  3. रिमझिम के साथ
    बादलों को छोड़ एक बूंद
    आसमान तकते चेहरे पर
    यूं गिरी जैसे ….,
    कोई राह भटकी नज्म...
    बेहतरीन।

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    उत्तर
    1. आपकी हौसला अफजाई बहुमूल्य है मेरे सृजन के लिए...., हृदयतल से आभार पुरुषोत्तम जी

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  4. असंख्य बूंदों के संसार में
    तब से अब तक…,
    वही भटकी नज्म ढूंढती हूँ
    बहुत ही सुंदर सार्थक प्रतीकात्मक सृजन प्रिय मीना जी | प्रकृति के माध्यम से सृजन की प्रेरणा बहुत ही सहज है पर उसे देखने मौलिक नजरिया एक कवि मन का ही होता है | सस्नेह शुभकामनायें |

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    1. प्रिय रेणु जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया अभिभूत करती है मन को । आपकी शुभकामनाएं और स्नेह अनमोल हैं मेरे लिए ।

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  5. वाहह्हह.. खूबसूरत... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति मीना जी।

    इक नज़्म जो बारिश की पहली बूँद-सी खोई
    ढूँढती आँखें जाग रातभर तितली के परों पर सोई

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    उत्तर
    1. आपकी अपनेपन से सराबोर पंक्तियाँ...., यूं लगता है मिल गई मेरी बारिश की बूंद जो तितली के पंखों में अटक गई थी जा कर ...., काव्यात्मक स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए अति आभार श्वेता जी ।

      हटाएं
  6. उत्साहवर्धित करती प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार रविन्द्र जी ।

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  7. असंख्य बूंदों के संसार में
    तब से अब तक…,
    वही भटकी नज्म ढूंढती हूँ
    थोड़े शब्दों में बहुत ही बड़ी बात किस लाइन को प्रथम श्रेणी में रखा जाये मन के भावों को छू गई कहने के लिए....जीवन के करीब ह्रदय स्पर्शी

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    1. मान भरी सराहनीय प्रतिक्रिया से लेखनी को सार्थकता मिली संजय जी । आपकी प्रतिक्रियाएं सदैव उत्साहवर्धन करती हैं हृदय से आभार ।

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  8. आवश्यक सूचना :

    सभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html

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  9. अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन के लिए आपको हार्दिक बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं ध्रुव सिंह जी ।

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  10. बारिश की बूँद जब ख्याल के लम्हों को समेटते हुए पन्नों पे उतरती है तो नज़्म बन के दिलों के केनवास पर छा जाती है ...
    बहुत ही लाजवाब भावपूर्ण ...

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    उत्तर
    1. आपकी अर्थपूर्ण सारगर्भित प्रतिक्रिया ने रचना का मान बढ़ाया । हृदयतल से आभार नासवा जी ।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"