साधारण कहलाना मंजूर नही
और असाधारण होना मांगता है
कठिन श्रम साध्य लक्ष्य साधना
चाहिए गर आसमान से पूरा चाँद
तो दोषारोपण करना गलत होगा
वक्त कब थमा किसी की खातिर
उसे पकड़़ने के लिए श्रम करना होगा
लकीरों को छोड़ नव जागरण ला
तू नहीं किसी से कम पहले स्वयं को समझा
छोड़ व्यर्थ प्रलाप , व्यर्थ रोना छोड़ दे
दुनिया उसी की है जो वक्त की धारा मोड़ देपहन चोला कर्मयोग का खुद में परिवर्तन ला
कीमत अपनी खुद समझ फिर औरों को समझा
★★★★★
लकीरों को छोड़ नव जागरण ला
जवाब देंहटाएंतू नहीं किसी से कम पहले स्वयं को समझा
दुनिया उसी की है जो वक्त की धारा मोड़ दे
छोड़ व्यर्थ प्रलाप , व्यर्थ रोना छोड़ दे ।
बहुत बहुत सुंदर आह्वान मीना जी साधारण और असाधारण का मापदंड नहीं किया जा सकता, र्कम करना जरूरी है असाधारण होने के लिए।
आपकी उर्जावान प्रतिक्रिया सदैव हौसला अफजाई करती है कुसुम जी ! स्नेहिल आभार ।
हटाएंपहन चोला कर्मयोग का खुद में परिवर्तन ला
जवाब देंहटाएंकीमत अपनी खुद समझ फिर औरों को समझा
नए जोश का संचार करती बहुत ही सुंदर रचना, मीना दी।
उत्साहवर्धन के लिए अनेकानेक धन्यवाद ज्योति जी !
हटाएं
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद
हृदय से आभार श्वेता जी मेरी रचना को पाँच लिंकों का आनन्द मे साझा करने के लिए ।
हटाएंबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना
उत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभार दी !
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-08-2019) को "हरेला का त्यौहार" (चर्चा अंक- 3416) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
चर्चामंच पर रचना को मान देने के स्नेहिल आभार अनु !
हटाएंलकीरों को छोड़ नव जागरण ला
जवाब देंहटाएंतू नहीं किसी से कम पहले स्वयं को समझा
छोड़ व्यर्थ प्रलाप , व्यर्थ रोना छोड़ दे
दुनिया उसी की है जो वक्त की धारा मोड़ दे
वाह!!!
क्या बात
बहुत लाजवाब
स्नेहिल उत्साहवर्धन के लिए आभार सुधा जी ।
हटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति मीना जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
हटाएंअत्यंत प्रेरणादायी कविता मीना जी
जवाब देंहटाएंअनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अलकनन्दा जी ।
हटाएंसमय की धारा मोड़ने वाले कुछ पागल होते हैं जो अपना लक्ष्य खुद तय करते हैं और समाज उन्हें फोलो करता है ...
जवाब देंहटाएंप्रेरणा देती रचना है ...
रचना को सार्थकता देती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार नासवा जी ।
हटाएंअच्छे सवालों को उठाती यह रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार संजय जी ।
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