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गुरुवार, 1 अगस्त 2019

"आह्वान"

साधारण कहलाना मंजूर नही
और असाधारण होना मांगता है
कठिन श्रम साध्य लक्ष्य साधना

चाहिए गर आसमान से पूरा चाँद
तो दोषारोपण करना गलत होगा
वक्त कब थमा किसी की खातिर
उसे पकड़़ने के लिए श्रम करना होगा

लकीरों को छोड़ नव जागरण ला
तू नहीं किसी से कम पहले स्वयं को समझा
छोड़ व्यर्थ प्रलाप , व्यर्थ रोना छोड़ दे 
दुनिया उसी की है जो वक्त की धारा मोड़ दे

पहन चोला कर्मयोग का खुद में परिवर्तन ला
कीमत अपनी खुद समझ फिर औरों को समझा

★★★★★

20 टिप्‍पणियां:

  1. लकीरों को छोड़ नव जागरण ला
    तू नहीं किसी से कम पहले स्वयं को समझा
    दुनिया उसी की है जो वक्त की धारा मोड़ दे
    छोड़ व्यर्थ प्रलाप , व्यर्थ रोना छोड़ दे ।

    बहुत बहुत सुंदर आह्वान मीना जी साधारण और असाधारण का मापदंड नहीं किया जा सकता, र्कम करना जरूरी है असाधारण होने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी उर्जावान प्रतिक्रिया सदैव हौसला अफजाई करती है कुसुम जी ! स्नेहिल आभार ।

      हटाएं
  2. पहन चोला कर्मयोग का खुद में परिवर्तन ला
    कीमत अपनी खुद समझ फिर औरों को समझा
    नए जोश का संचार करती बहुत ही सुंदर रचना, मीना दी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन के लिए अनेकानेक धन्यवाद ज्योति जी !

      हटाएं

  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदय से आभार श्वेता जी मेरी रचना को पाँच लिंकों का आनन्द मे साझा करने के लिए ।

      हटाएं
  4. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति
    उम्दा रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-08-2019) को "हरेला का त्यौहार" (चर्चा अंक- 3416) पर भी होगी।


    --

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….

    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चामंच पर रचना को मान देने के स्नेहिल आभार अनु !

      हटाएं
  6. लकीरों को छोड़ नव जागरण ला
    तू नहीं किसी से कम पहले स्वयं को समझा
    छोड़ व्यर्थ प्रलाप , व्यर्थ रोना छोड़ दे
    दुनिया उसी की है जो वक्त की धारा मोड़ दे
    वाह!!!
    क्या बात
    बहुत लाजवाब

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्नेहिल उत्साहवर्धन के लिए आभार सुधा जी ।

      हटाएं
  7. बेहतरीन अभिव्यक्ति मीना जी

    जवाब देंहटाएं
  8. अत्यंत प्रेरणादायी कव‍िता मीना जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अलकनन्दा जी ।

      हटाएं
  9. समय की धारा मोड़ने वाले कुछ पागल होते हैं जो अपना लक्ष्य खुद तय करते हैं और समाज उन्हें फोलो करता है ...
    प्रेरणा देती रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना को सार्थकता देती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार नासवा जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"