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शुक्रवार, 22 मई 2020

"मजदूर"

 विकास रथ की धुरी सहित
अर्थ व्यवस्था अट्टालिका के
नींव प्रस्तर...
तुम कमतर कैसे हो गए

दर दर की झेलते अवहेलना
अपने श्रम से खड़े करते
गगनचुंबी भवन…
अपने ही घर में प्रवासी कैसे हो गए

मूल्य समझो कभी तो निज मान का
बनते अंग सदा भीड़ तंत्र का
जनता जनार्दन हो तुम …..
विपद- बेला में दीन कैसे हो गए

उपेक्षा का गरल पीयोगे कब तक
चलना संभल सीखोगे कब तक
पर्वत जैसे धीरज वालों ...
तुम इतने अधीर कैसे हो  गए

तुम्हारे बल पर रोटियां सिकती 
सत्ता और शक्ति की गोट चलती 
कभी तो हो स्व हित में चिन्तन ….
सदा शोषित तुम ही कैसे हो गए

****

【चित्र-गूगल से साभार】








12 टिप्‍पणियां:

  1. उपेक्षा का गरल पीयोगे कब तक
    चलना संभल सीखोगे कब तक
    पर्वत जैसे धीरज वालों ...
    तुम इतने अधीर कैसे हो गए
    वाह बहुत खूब मीना जी सार्थक सुंदर।
    भाव प्रणव रचना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन को मान
      मिला .. बहुत बहुत आभार कुसुम जी । सादर...,

      हटाएं
  2. सार्थक प्रस्तुति।
    देश के श्रमवीरों को नमन।

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२३-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २२ "मज़दूर/ मजूर /श्रमिक/श्रमजीवी" (चर्चा अंक-३७११) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर रचना साझा करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।

      हटाएं
  4. सहज सुन्दर शब्दों से मजदूरों की व्यथा वर्णित हो रही है सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय मीना जी

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्साहवर्धन करती ऊर्जावान प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार आपका ।

    जवाब देंहटाएं
  6. उपेक्षा का गरल पीयोगे कब तक
    चलना संभल सीखोगे कब तक
    पर्वत जैसे धीरज वालों ...
    तुम इतने अधीर कैसे हो गए

    काश !!हम उन्हें उन्ही का महत्व समझा पाते ,श्रमिक या शोषित वर्ग तक आपका ये संदेश पंहुचा पाते ,चिंतनपरक सृजन मीना जी ,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सत्य कथन कामिनी जी ! सादर नमन सहित बहुत बहुत आभार ।

      हटाएं
  7. बहुत सुन्दर सार्थक सृजन
    सच में सब तुम्हारी बदौलत है फिर तुम निस्पृह कैसे
    जनता जनार्दन हो तुम …..
    विपद- बेला में दीन कैसे हो गए
    पर क्या करें कभी तो अपने बल को समझें...
    चिन्तनपरक एवं लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन का मर्म सपष्ट करती समीक्षा के लिए सहृदय आभार सुधा जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"