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शनिवार, 4 जुलाई 2020

"वक्त"

एक मुद्दत के बाद
आईने की रेत हटा 
खुद के जैसा
खुद की नजर से
तुमको देखा

पहली बार लगा
वक्त गुजरा कहाँ हैं
वहीं थम गया है 
तुम्हारी पल्लू संभालती
अंगुलियों से लिपटा

उजली धूप सी हँसी के साथ
 मानो कह रहा हो..
गुजर जाऊँ मैं वो हस्ती नहीं
तह दर तह सिमटा रहा
युगों से..,
मैं तो यहीं- कहीं

तुम्हारे ही आस-पास रहा
सर्दियों की ढलती धूप में
गर्मी की तपती लूओं में
सावन की बौछारों से भीगता
विस्मृत स्मृति के गलियारों में

🍁🍁🍁

24 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 05 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पांच लिंकों का आनन्द" में रचना साझा करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।

      हटाएं
  2. सही कहा माना दीदी।
    वक़्त तो जीवनपर्यंत संग ही रहता है। सर्दी, गर्मी और बारिश की तरह सिर्फ़ उसका रंग बदलता है। रूप उसका जैसा भी हो वह स्मृतियों में सदैव रहता है। जैसे अपना ऐसा कोई प्रिय हो, जिसने कभी हर्ष तो कभी दर्द दिया हो।
    भावपूर्ण सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित समीक्षात्मक प्रतिक्रिया हेतु सहृदय आभार शशि भाई 🙏

      हटाएं
  3. पहली बार लगा
    वक्त गुजरा कहाँ हैं
    वहीं थम गया है
    तुम्हारी पल्लू संभालती
    अंगुलियों से लिपटा
    बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति सखी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार सखी ।

      हटाएं
  4. पहली बार लगा
    वक्त गुजरा कहाँ हैं
    वहीं थम गया है
    तुम्हारी पल्लू संभालती
    अंगुलियों से लिपटा.
    बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय मीना दी .

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार
      अनीता ।

      हटाएं
  5. गुलज़ार ही की इक पंक्ति याद आ गयी

    वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
    इसकी आदत भी आदमी सी है

    बहुत प्यारी रचना रची है आपने
    ये पंकितियाँ खासकर बहुत सुंदर रची हैं
    तुम्हारे ही आस-पास
    सर्दियों की ढलती धूप में
    गर्मी की तपती लूओं में
    सावन की बौछारों से भीगा
    विस्मृत स्मृति के गलियारों में

    हृदयस्पर्शी सृजन
    शुभकामानएं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार जोया जी ।

      हटाएं
  6. तुम्हारी पल्लू संभालती
    अंगुलियों से लिपटा

    यादों में सजीव सदा रहें.. उन्हें नमन

    जवाब देंहटाएं
  7. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (06-07-2020) को 'नदी-नाले उफन आये' (चर्चा अंक 3754)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर रचना सम्मिलित करने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय रविन्द्र जी ।

      हटाएं
  8. सुन्दर प्रस्तुति मीना जी

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  9. कई बार उम्र गुज़र जाती है पर वक़्त वहीँ रहता है ...
    स्मृतियों का सहारा रहे तो कई बार तो उम्र भी नहीं गुज़रती ... बहुत मोहक रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन का मर्म स्पष्ट करती अनमोल प्रतिक्रिया हेतु असीम आभार नासवा जी ।

      हटाएं
  10. उजली धूप सी हँसी के साथ
    मानो कह रहा हो..
    गुजर जाऊँ मैं वो हस्ती नहीं
    तह दर तह सिमटा युगों से
    मैं तो यहीं- कहीं…
    बहुत ही सुंदर ,

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनमोल प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार ज्योति जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"