Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

"त्रिवेणी"

माटी की देह से उठती  मादक गंध ,
सूर्योदय के साथ दे रही है संदेशा ।

प्रकृति की देहरी पर पावस ने पांव रख दिये हैं ।।
🍁🍁🍁


घंटे दिन में और दिन बदल रहे हैं महिनों में ,
मन के साथ घरों के दरवाजे भी बंद है ।

आरजू यही है महिने साल में न बदलें ।।
🍁🍁🍁

वसन्त ,ग्रीष्म कब आई, कब गई,भान नहीं ,
खिड़की के शीशे पर ठहरी हैं पानी की बूदें ।

ओह ! बारिशों का मौसम भी आ गया ।।
🍁🍁🍁


लेखनी और डायरी बंद है कई महिनों से ,
किताबें भी नाराज नाराज लगती हैं ।

कभी-कभी अंगुलियां ही फिसलती हैं 'की-बोर्ड'
 पर ।।
🍁🍁🍁


रोज का अपडेट कितने आए.., हैं..,और गए ,
सुप्रभात.. शुभरात्रि सा लगने लगा है ।

घर पर रहें..सुरक्षित रहें..यहीं प्रार्थना है ।।
🍁🍁🍁




28 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२५-०७-२०२०) को 'सारे प्रश्न छलमय' (चर्चा अंक-३७७३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच की प्रस्तुति में सृजन को सम्मिलित करने के लिए स्नेहिल आभार अनीता ।

      हटाएं
  2. वसन्त ,ग्रीष्म कब आई, कब गई,भान नहीं ,
    खिड़की के शीशे पर ठहरी हैं पानी की बूदें ।

    ओह ! बारिशों का मौसम भी आ गया ।।
    🍁🍁🍁
    सही कहा आपने घर पर रहते रहते मौसम बदलने का भान भी नहीं हो रहा...पर क्या करें...
    घर पर रहें सुरक्षित रहें
    बहुत सुन्दर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सुधा जी ।

      हटाएं
  3. मन को छूता सराहनीय सृजन होता है आपका आदरणीय मीना दीदी।
    बेहतरीन और बेहतरीन ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धक अपनत्व भरी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली अनुजा ! सहृदय आभार ।

      हटाएं
  4. घंटे दिन में और दिन बदल रहे हैं महिनों में ,
    मन के साथ घरों के दरवाजे भी बंद है ।
    आरजू यही है महिने साल में न बदलें ।।

    बहुत खूब,हर दिल में उमड़ती भावनाओं को शब्दों में पिरो दिया है आपने मीना जी,मन में कुछ ऐसी ही उथल-पुथल सी मची रह रही है,कहने को वक़्त ही वक़्त है मगर फुरसत नहीं है,लाजबाब अभिव्यक्ति,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता
      मिली। कोरोना महामारी के कारण बढ़ती चिन्ताएं खत्म ही नहीं होती । सादर आभार मर्मस्पर्शी प्रतिक्रिया हेतु ।

      हटाएं
  5. वर्तमान परिस्थितियों का सटीक चित्रण । हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. 'मंथन'पर आपका हार्दिक स्वागत सर! आपकी अनमोल सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. मनोबल संवर्द्धन करती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर ।

      हटाएं
  7. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-3-22) को "सैकत तीर शिकारा बांधूं"'(चर्चा अंक-4374)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  8. विशेष प्रस्तुति में मेरी रचनाओं का चयन हर्ष और गर्व का विषय है मेरे लिए.., बहुत बहुत आभार कामिनी जी!

    जवाब देंहटाएं
  9. कोरोना काल की अनुभूतियों का सटीक विश्लेषण।

    जवाब देंहटाएं
  10. सारगर्भित अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कुसुम जी ।

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"