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गुरुवार, 28 जनवरी 2021

"मन"

                       


अपने में खोया

कुछ जागा कुछ सोया

एकाकी मन

बंजारा बन...

ठौर अपना सा ढूँढे


अब जाए कहाँ

कहने को यहाँ

किसे समझे अपना

असमंजस में डूबा..

बावरा मन मुझसे पूछे


सांसारिक बंधन

नादान न समझे

अलबेला  मन

माया में उलझे


शावक सा भागे 

देखे ना आगे

रोकूँ इसको कैसे...

कोई राह नहीं सूझे


***

36 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर मनोभावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार जिज्ञासा जी!

      हटाएं
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३०-०१-२०२१) को 'कुहरा छँटने ही वाला है'(चर्चा अंक-३९६२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर रचना सम्मिलित करने के लिए सहृदय आभार अनीता जी!

      हटाएं
  3. सांसारिक बंधन
    नादान न समझे
    अलबेला मन
    माया में उलझे!
    खुद से उलझते मन की सुंदर भावाभिव्यक्ति प्रिय मीना जी हार्दिक शुभकामनाएं|

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना पा कर सृजन सार्थक हुआ प्रिय रेणु जी! हार्दिक आभार 🙏🌹🙏

      हटाएं
  4. बेहतरीन रचना, सत्य ही है मन की स्थिरता मन पे ही निर्भर है, पूरी रचना बहुत बढ़िया है , सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  5. सराहना भरी प्रतिक्रिया पा कर लेखन सार्थक हुआ प्रिय ज्योति जी!हार्दिक आभार 🙏🌹🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. मन के नाना रूपों को सुंदर भाव क्षणिकाओं में सुंदर से गूंथा है मीना जी आपने जैसे मेरे भाव हो या फिर सभी को लगे शायद ये उन्हीं के भाव है ।
    बहुत बहुत सुंदर सृजन।
    सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल हृदयस्पर्शी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से मनोबल संवर्द्धन हुआ और सृजन को सार्थकता मिली । असीम आभार कुसुम जी !

      हटाएं

  7. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    31/01/2021 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......


    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पाँच लिंकों का आनन्द में रचना सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कुलदीप जी !

      हटाएं
  8. अपने में खोया

    कुछ जागा कुछ सोया

    एकाकी मन

    बंजारा बन...

    ठौर अपना सा ढूँढे, हृदयस्पर्शी व भावपूर्ण रचना।

    जवाब देंहटाएं
  9. शावक सा भागे

    देखे ना आगे

    रोकूँ इसको कैसे...

    कोई राह नहीं सूझे

    मन के उलझे भावो को बहुत ही सुंदर शब्दों में पिरोया है आपने मीना जी,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा..हार्दिक आभार कामिनी जी🙏🌹🙏

      हटाएं
  10. यही बंजारापन मन और जीवन की खूबसूरती है । अच्छा लगा ।

    जवाब देंहटाएं
  11. उत्तर
    1. आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ ज्योति जी!

      हटाएं
  12. मन के पथिक की यह रचना बहुत कुछ कहती है..
    मन से दूर दुनिया है..मन में लेकिन रहती है..

    प्रेरक प्रसंग छेड़ने वालीं आपकी कविता बहुत अच्छी लगी..
    सादर प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कविता आपको अच्छी लगी..लेखन सफल हुआ. बहुत बहुत आभार आपका 🙏🌹

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"