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मंगलवार, 22 नवंबर 2016

"चिन्तन"


दीवार की मुंडेर पर बैठ
आजकल रोजाना एक पंछी
डैने फैलाए धूप सेकता है
उसे देख भान होता है
उसकी जिन्दगी थम सी गई है
थमे भी क्यों ना ?
अनवरत असीम और अनन्त
आसमान में अन्तहीन परवाजे़
हौंसलों की पकड़ ढीली करती ही हैं
कोई बात नही……,
विश्रान्ति के पल हैं
कुछ चिन्तन करना चाहिए
परवाजों को कर बुलन्द
पुन: नभ को छूना चाहिए .

XXXXX

13 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर शब्द रचना
    http://savanxxx.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बहुत‎ धन्यवाद संजय जी .

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-11-2020) को  "असम्भव कुछ भी नहीं"  (चर्चा अंक-3900)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए हार्दिक आभार सर।

      हटाएं
  4. प्रेरणादायी व सुन्दर रचना - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न टिप्पणी के लिए आभारी हूँ शांतनु जी . सादर नमन।

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर.

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"