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गुरुवार, 29 जून 2017

"सुनामी"

कोरे पन्नों पर मेरी लिखी
आड़ी तिरछी पंक्तियों और
यहाँ-वहाँ कटी इबारतों से बनी
बेतरतीब सी आकृतियों को देख
वह उसे दरिया में आई सुनामी कहती है ।
बात तो सही‎ है.....,
सुनामी चाहे दरिया की हो या मन की
 बहुत कुछ तोड़ती और जोड़ती है
तभी तो ध्वंस और सृजन के बीच
नव द्वीप निर्मित होते हैं ।
   

          ×××××××××××××

6 टिप्‍पणियां:

  1. गहन सोच के बाद उपजा दर्द....लाजवाब आप कितनी गहराई से सोचती समझती और प्रकट भी करती हैं :)

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  2. भाव आपके हृदय तक पहुँचॆ मेरे लेखन सफल हुआ .आपका बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी .

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरे ब्लॉग पर हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया:)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप बहुत बहुत अच्छा लिखते हैं . अच्छा साहित्य‎ पढ़ने को मिले यह सौभाग्य की बात है मेरे लिए .

      हटाएं
  4. हार्दिक धन्यवाद लोकेश जी .

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"