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गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

"अपने पराये"


(This image has been taken from google)
पेड़ों की डाल से
टूट कर गिरे चन्द फूल‎
अलग नही है
ब्याह के बाद  की बेटियों से
आंगन तो है अपना ही
पर तब तक ही
जब तक साथ था
डाल और पत्तियों‎ का
अब ताक रहे हैं
एक दूसरे  को यूं
जैसे  घर आए मेहमान हो
बेटियां भी तो मेहमान ही
बन जाती हैं तभी तो
पराया धन कहलाती हैं
आयेगा एक हवा का झोंका
र एक दूसरे से कह उठेंगे यूं
अब के बिछड़े  ना जाने
कब मिलेंगे
यदि मिले इस जन्म‎ में तो
बस चन्द लम्हों के लिए
मेहमानों  के तरह मिलेंगे

XXXXX

12 टिप्‍पणियां:

  1. काश मेहमान नहीं मालिकों होती बेटियाँ उतना ही जितना बहुएँ ... ये फ़र्क़ क्यों हो ... मन के भाव लिखे हैं आपने ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए‎ जितना शुक्रिया कहूँ कम होगा . हार्दिक धन्यवाद.

      हटाएं
  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

    अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत‎ आभार आपका मुझे "लोकतंत्र" संवाद मंच" में स्थान देकर मान देने के लिए.

      हटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/02/58.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत‎ आभार आपका मुझे "मित्र मंडली" में में स्थान देकर मान देने के लिए.

      हटाएं
  4. जीवन में रिश्तों की कटुता का एहसास कराती एक मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति जो प्रतीकों का ख़ूबसूरती से इस्तेमाल करते हुए व्यापक प्रभाव छोड़ती है.
    बधाई एवं शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कृपया "जीवन में रिश्तों की कटुता" को जीवन में रिश्तों का कटु यथार्थ पढ़ें. सधन्यवाद.

      हटाएं
    2. बहुत बहुत‎ आभार प्रोत्साहन‎ वर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु रविन्द्र सिंह जी .

      हटाएं
  5. बस चन्द लम्हों के लिए
    मेहमानों के तरह मिलेंगे
    रिश्तों की कटुता का एहसास कराती .सच में बहुत गहन और विचारणीय...कुछ पंक्तियों में बहुत कुछ कह दिया...

    जवाब देंहटाएं
  6. हौसलाअफजाई के लिए हृदयतल से आभार संजय जी.

    जवाब देंहटाएं
  7. मीना जी नमस्कार
    आपकी इस रचना को http://forum4.co.in/forum_news-4140/ पर पोस्ट किया गया है

    सादर
    संजय भास्कर

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"