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शनिवार, 26 मई 2018

“कशमकश”

फुर्सत के लम्हे रोज़ रोज़ मिला नहीं करते ।
सूखे फूल गुलाब के फिर खिला नहीं करते ।।

छूटा जो  हाथ एक बार दुनिया की भीड़ में ।
ग़लती हो अपने आप से तो गिला नहीं करते ।।

आंधियों का दौर है , है गर्द ओढ़े आसमां ।
चातक को गागर नीर हम पिला नहीं सकते ।।

देने को साथ कारवां में लोग हैं बहुत ।
खोया है गर यकीं तो फिर दिला नहीं सकते ।।

सोचूं ऐ जिन्दगी तुम्हें मैं गले से लगा लूं ।
रस्मे वफ़ा-ए-इश्क से फिर हिला नहीं सकते ।।

                  XXXXX

26 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 27 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. "पांच लिंक़ो का आनंद में" मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार यशोदा जी । आप के लिंक से जुड़ना मेरे लिए सदैव प्रसन्नता का विषय होता है ।

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  3. फुर्सत के लम्हे रोज़ रोज़ मिला नहीं करते ।
    सूखे फूल गुलाब के फिर खिला नहीं करते ।।
    वास्तविकता जिसमें बेपनाह दर्द है, वेहतरीन नज्म लाजवाब है मीना जी !

    जवाब देंहटाएं
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    1. आप की सराहना से युक्त उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देख कर खुशी की अनुभूति होती है । आपका तहेदिल से धन्यवाद संजय जी ।

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  4. बहुत सुंदर नज़्म मीना जी।
    मन के सारे भाव शब्दों के साथ तैरने लगे..👌

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  5. बहुत सुन्दर रचना मीना जी !
    छूटा जो हाथ एक बार दुनिया की भीड़ में ।
    ग़लती हो अपने आप से तो गिला नहीं करते ।
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २८ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार ध्रुव सिंह जी "लोकतंत्र" संवाद मंच में मेरी रचना को स्थान देने के लिए ।

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी ।

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  8. बहुत ख़ूब ...
    लाजवाब मतला और कमाल के शेर हैं सभी ...

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    उत्तर
    1. आप गज़ल लिखते हैं मुझे इस रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से प्रसन्नता हुई । गज़ल के लिए मेरा यह पहला प्रयास है । तहेदिल से धन्यवाद आपका ।

      हटाएं
  9. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(18-7-21) को "प्रीत की होती सजा कुछ और है" (चर्चा अंक- 4129) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत। आभार कामिनी जी। आपने मेरी पहले ग़ज़लरूपी प्रयास को मंच पर स्थान दिया ।

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  10. देने को साथ कारवां में लोग हैं बहुत ।
    खोया है गर यकीं तो फिर दिला नहीं सकते ।।वाह! बेहतरीन सृजन सखी।

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  11. छूटा जो हाथ एक बार दुनिया की भीड़ में ।
    ग़लती हो अपने आप से तो गिला नहीं करते ।।

    फिर भी लोग दूसरों पर ही गलती का आरोप लगा देते हैं ।
    खूबसूरत रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मैं सोचती हूँ मानव स्वभाव में पूर्णता आ जाएगी जब वह दोषारोपण की बजाय आत्ममंथन करना सीख लेगा।आपकी स्नेहिल उपस्थिति सृजन में ऊर्जा भरती है । मैं आपके मनोबल संवर्द्धन से अभिभूत हूँ मैम! हार्दिक आभार🙏🌹🙏

      हटाएं
  12. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"