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मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

"चिन्तन"(चोका)

क्षणभंगुर
अपना ये जीवन
शून्य जगत
जीवन का पहिया
कोल्हू सा लागे
मानव बँध भागे
सूझे ना आगे
मुझसे मन पूछे
खुद का स्वत्व
मैं दृगों में अटका
अश्रु बिन्दु सा
बन के खारा जल
बिखर जाऊँ
कोमल गालों पर
या बन जाऊँ
किसी सीप का मोती
कर्मों का फल
तुझ पर निर्भर
स्वयं को प्रेरित कर

  XXXXX

22 टिप्‍पणियां:

  1. कर्मों का फल वो अपने हाथ में ही रखेगा ... दिल को सुकून पहुँचता है इस बात से भी ... ए ये भी सच है की ये जगत शून्य है ... स्वप्न जैसे ...
    गहरी रचना ...

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    उत्तर
    1. रचना आपके मन तक पहुँची ....,लेखनी सफल हुई । बहुत बहुत आभार नासवा जी ।

      हटाएं
  2. नमस्ते,

    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 20 दिसम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1252 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. 'पांच लिंकों का आनंद' में मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र सिंह जी. कल प्रातः इसके नए अंक की प्रतिक्षा रहेगी ।


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  3. बहुत ही गहन चिन्तनीय...
    वाह!!!

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    1. रचना सराहना के लिए बहुत बहुत आभार सुधा जी !

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  4. गहरे भावों का अवगूंठन मीना जी ।
    सच कर्मो का है फेरा सारा या खारे अश्रु बिंदु या स्वाति जल बन मोती ।
    बहुत सुंदर रचना।

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    उत्तर
    1. आपकी सराहनीय और उर्जावान प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कुसुम जी ।

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  5. भाव की तरह ही गहरी और शांत कमाल कर दिया मीना जी

    जवाब देंहटाएं
  6. आप की प्रतिक्रिया से लेखन को नई गति मिलती है संजय जी ! उत्साहवर्धन के लिए अति आभार ।

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  7. कोल्हू सा ही तो है ये जीवन, जो एक बार बँधा सो बँधा। अच्छी रचना है।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"