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शनिवार, 23 मार्च 2019

"फरेब"

सौ सौ फरेब
नयनों  मे समाये
नेह दिखाये
आता नहीं यकीन
बातों पे तेरी
याद पुरानी आए
विश्वास करूँ
भूलूँ अतीत सारा
पैने से बोल
सिहरन तीरों सी
मिल न जाये
वही विश्वासघात
चिन्तित मन
मिलने से पहले
सोचे यही दुबारा
xxxxx


23 टिप्‍पणियां:

  1. पैने से बोल
    सिहरन तीरों सी मिल न जाए
    वहीं विश्वासघात चिंतित मन
    मिलने से पहले सोचे यही दोबारा
    बेहतरीन भावात्मक प्रहार

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  2. अंतिम पंक्ति में लग रहा है कुछ छूट गया?

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    उत्तर
    1. नहीं ठीक है :)

      पैने से बोल
      सिहरन तीरों सी
      मिल न जाये
      वही विश्वासघात
      चिन्तित मन
      मिलने से पहले
      सोचे यही दुबारा

      हटाएं
    2. आज मुझे आपसे प्रतिक्रिया में good से excellent जैसा remark मिला :-) लेखन सार्थक हुआ 🙏🙏

      हटाएं
  3. घात से डरे मन की सुंदर भावाभिव्यक्ति मीना जी।
    सुंदर शब्दों का संयोजन।

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    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हृदयी आभार कुसुम जी ।

      हटाएं
  4. सौ सौ फरेब
    नयनों मे समाये
    बहुत खूब आदरणीया

    जवाब देंहटाएं
  5. दिल को छुती बहुत सुंदर रचना, मीना दी।

    जवाब देंहटाएं
  6. पैने से बोल
    सिहरन तीरों सी
    मिल न जाये
    वही विश्वासघात
    चिन्तित मन
    मिलने से पहले
    सोचे यही दुबारा
    बहुत सुन्दर ,सटीक एवं सारगर्भित भावपूर्ण रचना...

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    उत्तर
    1. आपकी हौसला अफजाई सदैव लेखन हेतु उत्साहवर्धन करती है सुधा जी ।

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  7. उत्तर
    1. अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से आभार आपका ।

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  8. फरेब से डरे मन की बेहतरीन अभिव्यक्ति ,बहुत खूब ....

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  9. फरेब मिला हो तो विश्वास करना कठिन होता है ... और आसानी से करना भी नहीं चाहिए ... मन के भाव लखे हैं जो उपजते हैं डर से ...

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  10. बस यूं ही लिख डाली । फेसबुक पर कहीं देखा था इस शीर्षक से कुछ लिखें । अगर मैं वैसे भाव ला पाई जो फरेब से उपजते हैं तो लिखना सार्थक हुआ । हृदयतल से आभार नासवा जी ।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"