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शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

।। कुंडलियां ।।

"बेटी"

बेटी घर का मान है, मन उपवन का फूल ।
मात-पिता की लाडली , यह मत जाओ भूल ।।
यह मत जाओ भूल , याद रखना नर-नारी ।
रखती सब का मान , मान की वह अधिकारी ।।
कह 'मीना' यह बात, करो मत यूं अनदेखी ।
बेटों सम अधिकार , हम से मांगती बेटी

"किसान"

जी तोड़ मेहनत करे , खेतों बीच किसान ।
फल की आशा के बिना , जीवन लगे मसान ।।
जीवन लगे मसान , करे क्या वह बेचारा ।
धरती माँ का लाल , फिरे वो मारा मारा ।।
कह 'मीना' बिन आस ,गृहस्थी रुकती चलती ।
पालन अब परिवार ,  मुश्किल हो गया है जी ।।

( एक प्रयास कुंडलियां लिखने का ✍️)

★★★★★

10 टिप्‍पणियां:

  1. मीना जी, कुण्डली की रचना का आपका प्रयास सराहनीय है. पहली कुण्डली दिल को छूती है. दूसरी कुण्डली का अंत प्रभावशाली नहीं है किन्तु उसमें किसान के करुण जीवन का मार्मिक चित्रण है.

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आपका . ., कोशिश करूंगी दोबारा बेहतर लिखने की । बहुत अच्छी लगी आपकी प्रतिक्रिया । यही सोच कर पोस्ट की कि कमी बतायेंगे गुणीजन तभी सुधार की गुंजाइश रहेगी ।

      हटाएं
  2. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०६-१२-२०१९ ) को "पुलिस एनकाउंटर ?"(चर्चा अंक-३५४२) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर सृजन को साझा करने के निमंत्रण के लिए हृदयतल से आभार अनीता जी ।

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. हार्दिक आभार आपका कामिनी जी । सस्नेह वन्दे ।

      हटाएं
  4. बहुत सुन्दर कुंडलियाँ ... एक अच्छा प्रयास है ...
    बेटी पे लिखी रचना तो सीधे मन में उतरती है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार हौसला अफजाई के लिए नासवा जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"