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शुक्रवार, 2 जून 2017

“प्रार्थना”

किसी भी देव-स्थल पर जाकर एक  सकारात्मकता  आती है। हमारे मन में, एक सुकून और असीम शान्ति का अहसास होता है।  मेरी नजर में इसका कारण वो असीम शक्ति है जिसे हम अपना आराध्य इष्ट  ईश्वर मानते हैं। हम इन्हीं देवत्व के गुणों से सम्पन्न देवी-देवता की पूजा स्थल पर शान्ति और सुकून पाने के लिए धार्मिक स्थलों की यात्रा करते हैं जो अपने आप में स्वयंसिद्ध है।
                                 कहीं पढ़ा था कि शाब्दिक दृष्टि से धर्म का अर्थ ‘धारण करना’ होता है जो संस्कृत के ‘धृ’ धातु से बना। और धारण करने के लिए
वे अच्छे गुण जो ‘सर्वजन हिताय’ की भावना पर आधारित सम्पूर्ण‎ जीव जगत की भलाई ,कल्याण और परमार्थ के लिए हो। सुगमता की दृष्टि से मानव समुदाय‎ ने अपने आदर्श के रुप में अपने आराध्य चुने जिनकी प्रेरणा‎ से वे सन्मार्ग पर चल सके।
                                       आगे चलकर समाज में विचारों में मतभेद पैदा हुए कुछ विद्वानों‎ ने सगुण और कुछ ने निर्गुण उपासना पर बल दिया। सगुण उपासना में ईश प्रार्थना आसान हुई कि प्रत्यक्ष‎ रूप में आकार‎-प्रकार है अपने आराध्य का जिसको सर्वशक्तिमान मान वह पूजते हैं मगर निर्गुण उपासना आसान नही थी। ध्यान लगाना और आदर्शों का अनुसरण करना उस असीम शक्ति का जिसका कोई  आकार-प्रकार नही है वास्तव‎ में दुष्कर कार्य था। लेकिन मन्तव्य सभी‎ का एक था कि लौकिक विकास,उन्नति,परमार्थ और ‘सर्वजन हिताय,सर्वजन सुखाय’ हेतु  ईश आराधना
करनी है।
          भाग-दौड़ की जिन्दगी ,भौतिकतावादी दृष्टिकोण, 21वीं सदी के प्रतिस्पर्धात्मक जीवन शैली   में ये बातें शिक्षा के किसी पाठ्यक्रम‎ का हिस्सा‎ हो तो सकती हैं जो अगले सत्र में भुला दी जाती हैं। लेकिन  याद रखना ,इस बारे में सोचना युवा पीढ़ी को रूढ़िवादी लगता है। कुछ भी हो, व्यवहारिक जीवन की पटरी पर इन्सान जब चलना सीखता है तब दो पल के लिए सही, वह अपने  आराध्य की प्रार्थना‎ अवश्य  करता है।
                     प्रार्थना‎ में हम सदैव ईश्वर के असीम और श्रेष्ठ‎ रूप की सत्ता स्वीकार कर अपनी व अपने आत्मीयजनों  की समृद्धि और विकास तथा सुरक्षा हेतु वचन मांगते हैं कि हम सब आपके संरक्षण‎ में हैं और परिवार के मुखिया पिता अथवा माता के समान आपकी छत्र-छाया में स्वयं को सुरक्षित‎ महसूस करते हैं। एक से दो,दो से तीन……….,फिर यही श्रृंखला विशाल जन समुदाय‎ का रूप ले लेती है और सम्पूर्ण‎ समुदाय‎ द्वारा‎ अपने तथा अपने प्रियजनों के लिए मांगी गई‎ अभिलाषाएँ सर्वहित,सर्वकल्याण की भावना‎ का रूप ले देवस्थानों  में प्रवाहित सकारात्मक उर्जा का रूप ले लेती‎ है जिस के आवरण में प्रवेश कर हम देवस्थानों पर असीम शान्ति और सुख का अनुभव करते हैं।

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2 टिप्‍पणियां:

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"