फिजाओं में शोर बहुत है
मौन की चादर अपने वजूद से
लपेट मन किसी कोने में
गहरी नीन्द में सो रहा है
गहरी नीन्द में सो रहा है
कस कर शरीर की खूटियों से
बाँधा है ऐसे कि किसी हवा के झौके से
नींद में कहीं खलल ना पड़ जाए
खलल पड़ेगा भी कैसे…?
दिमाग ने वरदान जो दे रखा है
कुम्भकर्ण की तरह सोने का .
XXXXX
पूरी तरह सहमत हूं, शायद आज की यही जीवन शैली है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद संजय जी .
जवाब देंहटाएं