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सोमवार, 18 मार्च 2019

"चयन"

दर्द ये कैसा , आज मन व्यथित क्यों है ?
क्या हुआ तुझको , प्रकृति बोझिल सी क्यों है ?

क्या उभर आई ,  कोई पीड़ा पुरानी ।
मौन क्यों है पगले ! खोल तू अपनी वाणी ।।

हो व्यथा अवरुद्ध , वाणी कम बोलती है ।
वेदना के तार , अश्रु जलधार खोलती हैं ।।

कर्म पथ तेरा , “चयन” तुझको करना ।
है संसार का सार , यही पर जीना मरना ।।

XXXXX

10 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आपकी'सुन्दर'सी प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली । आपका तहेदिल से आभार ।

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  2. कर्म पथ तेरा , “चयन” तुझको करना ।
    है संसार का सार , यही पर जीना मरना ।। बहुत सुंदर रचना 👌

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  3. कर्म पथ तेरा , “चयन” तुझको करना
    है संसार का सार , यही पर जीना मरना
    बहुत खूब ,,होली की हार्दिक बधाई ,सखी

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    उत्तर
    1. आपके स्नेहिल वचनों से अभिभूत हूँ सखी । आपको भी होली की हार्दिक शुभकामनाएँँ एवं बधाई

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  4. कर्म पथ और खुदका चयन ...
    खुद की कर सकता है और प्रेरित हो सकता है इंसान ...
    गहरी और सार्थक चिंतन करती है रचना ...

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    उत्तर
    1. हृदयतल से बहुत बहुत आभार आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए । आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएँँ नासवा जी !!

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  5. कर्म पथ तेरा , “चयन” तुझको करना ।
    है संसार का सार , यही पर जीना मरना ।।

    सुन्दर पंक्तियाँ। हमारे कर्म ही हमारे जीवन का पथ निर्धारित करते हैं। हम उसे स्वर्ग बनाये या नर्क यह आखिरकार हमारे चुनावों पर निर्भर करता है।

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  6. सुन्दर सारगर्भित प्रतिक्रिया से हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार विकास जी ।

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"