Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

सोमवार, 15 जून 2020

"उलझा मांझा"

बेमुरव्वत सी इस दुनिया में ,
खुद को हम बहलाये कैसे ?
जीवन बगिया उलझा मांझा ,
 उलझन को सुलझाये कैसे ?

नहीं टूटती मन की चुप्पी ,
आस-पास में लोग बहुत है ।
फिरते लादे दिल पर बोझा ,
किस को सुनने की फुर्सत है ।

बीते जिस पर वो दिल जाने ,
खुद को वो समझाये कैसे ?
जीवन बगिया उलझा मांझा ,
उलझन को सुलझाये कैसे ?

अब कहते हैं हमने उसको ,
छिप- छिप अश्रु बहाते देखा ।
पीड़ा विगलित दुखी हृदय को ,
कैसे कर पाये अनदेखा ।

जड़ विहीन नकली दुनिया में ,
अपना नीड़ बसाये कैसे ?
जीवन बगिया उलझा मांझा ,
उलझन को सुलझाये कैसे ?

 *****


31 टिप्‍पणियां:

  1. मीना जी


    जो पीड़ा महसूस हो रही है वो आपकी इस रचना में सिसकती दिखी। बस इक सवाल। "जाने वाला तो क्या अब क्या ?" हम्म

    अवसाद इक सत्य है कटु सत्य , मर इस समाज और दुनिया से आस करना इक मूर्खता ये भी इक सत्य है। खुद को अपने प्रियजनों को बच्चों को सीखना होगा , खुद को सब्बल बनाना होगा ,



    बस लोग ये समझ ले की दूसरों को दुःख ना दें , दुनिया की आधी मुसीबतें कहता हो जाए





    सोच को मज़बूर करने देने वाली रचना

    बहुत ही sateek और सार्थक रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी जोया जी , सही कहा आपने जाने वाला तो गया
      .., अब कहा जा रहा सहानुभूति में कुछ भी ...,उसके जीते जी तो कुछ किया गया नही..जाने पर कुछ भी...मैं प्रभावित थी उसकी इंजीनियरिंग कम्पीटिशन की रैंकिंग से . जीवन में सफलताओं के स्वाद के साथ असफलताओं की कड़वाहट के साथ जीना सीखना होगा । आभार जोया जी . आपसे बात कर के अच्छा लगा ।

      हटाएं
    2. जी सही कहा

      इतनी काम उम्र
      साजिदा दिमाग
      और योग्यता

      :) इनका मिश्रण आज के समय में काम ही ठीक बैठता। .. दुनियादारी, चालुसि, मक्कारी और दूसरोंकी हाँ में हाँ मिला खुश रखना ये गन आने चाहिए वरना आपको जाना पड़ेगा


      ये घटना धीरे धीरे ये दुःख का रूप ले रहा है मेरे जेहन में
      हम्म्म। ..ॐ शान्ति

      हटाएं
    3. दुख के साथ सीख भी है इस दुखद घटना में जोया जी कि हम जिस भी क्षेत्र में कदम रख रहे हैं उसके पॉजीटिव- नैगेटिव दोनों पक्ष होते हैं । सफलता में इतरायें नहीं और असफलता से घबरायें नहीं यह बात हमें समझने के साथ-साथ अपने बच्चों को भी सीखाने की जरूरत है । प्रतिभाशाली व्यक्ति भी कभी न कभी निराशा के भंवर में उलझता ही उसे मानसिक तौर पर मजबूत करने की जिम्मेदारी अभिभावकों की और उसके स्वजनो की भी है ।

      हटाएं
    4. मैं पूर्णतः सहमत हूँ आपकी बातों से

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 16 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार यशोदा जी मुखरित मौन में रचना साझा करने के लिए । सादर..,

      हटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-06-2020) को   "उलझा माँझा"    (चर्चा अंक-3735)    पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को कल की चर्चा प्रस्तुति सम्मिलित करने के लिए सादर आभार सर ।

      हटाएं
  4. आशा निराशा दोनों ही जीवन के पहलू है किसी एक की अधिकता अवसाद की और लेे जाती है
    बहुत बढ़िया रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन को सार्थकता प्रदान करती आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार .

      हटाएं
  5. मन की पीड़ा को नये शब्द दिए हैं आपने ... सच है की कई बार उदासी घेरती है और घेरती ही चली जाती है और जनम लेती है रचना ऐसे में ... खुद की पीड़ा खुद को संहनी होती है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित अनमोल प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से आभार नासवा जी ।

      हटाएं
  6. जड़-विहीन दुनिया में सचमुच कठिन है नीड़ बनाना ..पर बनाना भी है और रहना भी है ..बहुत मार्मिक रचना है मीना जी

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली मैम 🙏
    तहेदिल से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  8. उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार सर 🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. अब कहते हैं हमने उसको ,
    छिप- छिप अश्रु बहाते देखा ।
    पीड़ा विगलित दुखी हृदय को ,
    कैसे कर पाये अनदेखा ।
    उसके अश्रु पोछे नहीं अब उसके लिए अश्रु बहाते हैंं।
    बीती बिगड़ी हर इक दशा पर पीछे बात बनाते हैं.....
    ऐसी दुनिया से क्या अपेक्षा क्यों मन कमजोर बनाते हो...
    किससे हारे कौन विजेता क्यों जीवन ठुकराते हो
    बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयस्पर्शी मुक्तक के रूप में सृजन को सार्थकता प्रदान करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सुधा जी । सस्नेह...,

      हटाएं
  10. बहुत ही बढ़िया ,भूला नही दिल बीती हुई बातों को

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही कहा आपने ...बहुत बहुत आभार ,आपने समय दिया मेरी रचनाओं के लिए ।

      हटाएं
  11. अब कहते हैं हमने उसको ,
    छिप- छिप अश्रु बहाते देखा ।
    पीड़ा विगलित दुखी हृदय को ,
    कैसे कर पाये अनदेखा ।
    यथार्थ, एक दुखी मन की पीड़ा को अनदेखाकर बाद में अफ़सोस जाहिर करना यही तो रीत बन गई है ,अद्भुत सृजन ,सादर नमन मीना जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सत्य को उजागर करती आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली कामिनी जी । स्नेहाभिवादन सहित असीम आभार ।

      हटाएं
  12. बीते जिस पर वो दिल जाने ,
    खुद को वो समझाये कैसे ?
    जीवन बगिया उलझा मांझा ,
    उलझन को सुलझाये कैसे ?
    आपका लेखन अलग पहचान रखताहापृय मीना जी। पिछला कुछ समय बहुत विसंगतियों भरा रहा। आपके ब्लॉग पर निरंतर आकर भी प्रतिक्रिया ना दे सकी जिसे लिए माफी चाहती हूँ। हार्दिक शुभकामनाके साथ दुआ करती हूँ, आपके लेखन का प्रवाह यूँ ही निर्बाध चलता रहे। 🌹🌹🙏🌹🌹

    जवाब देंहटाएं
  13. आपकी हृदयस्पर्शी बातें और शुभकामनाएँ मेरी ऊर्जा हैं प्रिय रेणु बहन.आपकी स्नेहिल प्रतिक्रियाओं ने सदैव मेरा लेखन के प्रति उत्साह बढ़ाया है.आपका साथ बना रहे. स्नेह बनाए रखिएगा. सस्नेह 🌹🌹🙏🙏🌹🌹

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"