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शनिवार, 8 अगस्त 2020

"बंद दरवाज़े"

खोलना चाहती थी
मन की वीथियों के
बंद दरवाजे ...
नेह में डूबे
फुर्सत के लम्हों में
मगर…
कुंडी-तालों पर
जंग लगा था
दुनियादारी का…
नेह का तेल
पानी सा हो गया
या फिर…
चाबी खो गई
वक्त के दरिया में
जल्दबाजी में…
मेरी स्मृति ही ,
धूमिल हो गई थी कहीं

🍁🍁🍁

31 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 09 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. "पांच लिंकों का आनन्द" में रचना साझा करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-08-2020) को     "भाँति-भाँति के रंग"  (चर्चा अंक-3788)     पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर रचना साम्मिलित करने हेतु सादर आभार सर .

      हटाएं
  3. मगर…
    कुंडी-तालों पर ,
    जंग लगा था ।
    दुनियादारी का…
    नेह का तेल ,
    पानी सा हो गया ।
    या फिर…
    चाबी खो गई ,
    अक्सर यही होता है... बहुत खूब...,बेहतरीन अभिव्यक्ति मीना जी,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन को सार्थकता प्रदान करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार कामिनी जी ! सादर नमन .

      हटाएं
  4. बहुत खूब,बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन प्रतिकात्मक शैली में गूँथे कोमल भाव सराहना से परे है।
    सुंदर सृजन हेतु बधाई आदरणीय मीना दी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी सराहना सम्पन्न सारगर्भित प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है अनीता!स्नेहिल आभार..,

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  7. सीमित शब्दों में बड़े अर्थ रखने वाली कविता, बहुत सुंदर

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    उत्तर
    1. सारगर्भित प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार अनिल जी ।

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  8. अपने कद से बड़ा अर्थ देती कविता, बहुत सुंदर

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  9. खोलना चाहती थी
    मन की वीथियों के
    बंद दरवाजे ...
    मगर…
    कुंडी-तालों पर
    जंग लगा था
    दुनियादारी का…..
    दुनियादारी की परवाह में न जाने कितने ही दरवाजे यूँँही बन्द रह जाते हैं उम्र भर...
    बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं लाजवाब सृजन।

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    उत्तर
    1. रचना को सार्थकता प्रदान करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार सुधा जी !

      हटाएं
  10. बहुत सुंदर मीना जी।
    गहरे तक पैठती रचना ।
    मन वीथिका के किवाड़ बस लोकाचार में बंद ही रह जाते हैं।
    अभिनव सृजन।

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखनी सार्थक हुई कुसुम जी . हदय से असीम आभार .

      हटाएं
  11. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी

    जवाब देंहटाएं
  12. कुछ अलग हट कर लाज़बाब रचना मीनाजी।

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    उत्तर
    1. रचना आपको अच्छी लगी लेखन सफल हुआ.. हार्दिक आभार . सादर...,

      हटाएं
  13. मन की विथियाँ मन के द्वारा ही खुलती हैं ... पुनः प्रयास उन्हें फिर खोल देगा ... सतत प्रयास उन्हें खुला रखेगा ...
    बहुत ही लाजवाब भावपूर्ण रचना ... श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से आभार नासवा जी..आपको भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई !!

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"