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शनिवार, 11 मार्च 2017

"स्वभाव"

कुछ किस्से , कहानियाँ  और बातें कालजयी होती हैं और वे हर generation के साथ परिस्थितियों के अनुसार सटीक बैठती हैं । अक्सर सुना है generation gap के कारण बहुत सारी चीजें बदल.जाया करती हैं जैसे फैशन और विचार , सोचने -समझने की पद्धति । कई बार भारी परिवर्तन के कारण सांस्कृतिक परिवर्तन भी दिखाई देते हैं मगर संस्कृति की अपनी विशेषता है यह  नए बदलावों  को आत्मसात करती निरन्तर गतिमान रहती है । बेहतर बातें कालजयी और सामयिक बातें समय के साथ समाप्त हो जाती हैं ।
                आज मैं एक छोटी सी कहानी आप सब से साझा करना चाहूँगी जिसकी ‘सीख’ आजकल की बोल-चाल भाषा में  "moral of the story" मेरे मन.को बहुत बार कठिन परिस्थितियों मे भटकने से रोकता  है ।
.                           एक व्यक्ति प्रतिदिन प्रातःकाल नदी में स्नान करने जाता था एक दिन उसने देखा , एक बिच्छू नदी के जल में डूब रहा है । उस व्यक्ति ने तुरन्त बिच्छू को बचाने के लिए अपनी हथेली उसके नीचे कर दी और बिच्छू को किनारे पर छोड़ने के लिए जैसे ही हथेली को ऊपर किया हथेली की सतह पर उसने डंक मार दिया ।दर्द से तड़प कर व्यक्ति ने जैसे ही हाथ झटका कि बिच्छू पुनः पानी में डुबकी खा गया । उस आदमी ने अपने दर्द को भूलकर अब की बार दूसरे हाथ से उसे बचाने का प्रयास जारी रखा । एक भला मानस नदी किनारे बैठा सम्पूर्ण घटनाक्रम को देख रहा था उस से रहा नही गया ,वह बोला - “ मूर्ख इन्सान ! एक बार के डंक से जी नही भरा कि दूसरा हाथ आगे कर दिया। “

                                   डूबते -उतराते बिच्छू से दूसरी हथेली में डंक खाने के बाद उसको निकालने के लिए प्रयास करते आदमी ने मासूमियत से उत्तर दिया -  “ जब यह संकट की घड़ी  में अपने स्वभाव और गुण को नही भूल पा रहा तो मैं इन्सान होकर अपने गुण और स्वभाव का परित्याग कैसे करुं। “

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"